पटना: सीमांचल में महागठबंधन के समक्ष किला बचाने की चुनौती है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से भी वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश जारी है. ओवैसी के मौजूदगी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. सीमांचल के नतीजे राजनीतिक दलों के भविष्य तय करने वाले हैं.
अल्पसंख्यक मतदाताओं पर नजर
सीमांचल में अल्पसंख्यक वोटरों की तादाद अच्छी खासी है. ऐसा माना जाता है कि अल्पसंख्यक वोटर जिधर जाते हैं पलड़ा उसी का भारी होता है. 2020 में भी अल्पसंख्यक वोटर राजनीतिक दलों के भविष्य तय करेंगे. सीमांचल की राजनीति का ट्रेंड राजद और कांग्रेस गठबंधन के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन चौका देने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव में यह मिथ्य टूट गया और पूरे सीमांचल में महागठबंधन के खाते में 1 सीट किशनगंज गई. कांग्रेस पार्टी किशनगंज अपने खाते में करने में कामयाब हुई.
अल्पसंख्यक वोटरों की ताकत महत्वपूर्ण
लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजों के बावजूद विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण के चलते नतीजे अलग हो जाते हैं. सीमांचल के 9 प्रखंडों और 218 पंचायतों वाले अररिया में अल्पसंख्यकों की आबादी 41% से अधिक है. किशनगंज में 7 प्रखंड और 126 पंचायतें हैं. यहां भी अल्पसंख्यकों की आबादी अधिक है. लगभग 68 फ़ीसदी जनसंख्या अल्पसंख्यकों की है. कटिहार जिले में अल्पसंख्यकों की आबादी 42% से ऊपर है. 16 प्रखंडों और 238 पंचायतों वाले कटिहार में राजनीतिक दलों के भविष्य अल्पसंख्यक तय करते हैं. पूर्णिया के 14 प्रखंडों और 252 पंचायतों में मुस्लिम आबादी लगभग 37% है. अल्पसंख्यक वोटरों की ताकत यहां भी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है.
क्या कहते हैं आरजेडी प्रवक्ता
महागठबंधन नेताओं को अल्पसंख्यक वोट बैंक पर ज्यादा भरोसा है और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की मजबूत स्थिति भी सीमांचल में रहती है. आरजेडी के प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि सीमांचल की ज्यादातर सीटें महागठबंधन के खाते में आएगी. एनडीए को निराशा मिलने वाली है. वहीं, बीजेपी के प्रवक्ता अजफर शम्सी ने कहा है कि पूरे सीमांचल में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की लहर है और हम भारी मतों के अंतर से चुनाव जीतेंगे.