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Bihar Caste Census: निषाद समाज को 15 जातियों में बांटने का मछुआरा समाज का विरोध, आंदोलन की चेतावनी - बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ

बिहार में जातीय जनगणना का काम जारी है. 15 मई तक दूसरे चरण को भी पूरा कर लिया जाएगा. लेकिन इसमें व्याप्त कमियों के चलते अब मछुआरा समाज आक्रोशित है. समजा का कहना है कि उनकी मछुआरा जाति को 15 उपजातियों में तोड़कर उन्हें अलग-अलग जातीय कोड जारी किया गया है. मछुआरा संघ का मानना है कि सरकार असल संख्या को दबाना चाहती है. जिस तरह यादवों को एक कोड में शामिल किया गया है वैसी ही उनकी जाति को भी एक कोड दिया जाए. समाज ने इसको लेकर आंदोलन की चेतावनी दी है.

15 उपजाति कोड में बांटने पर मछुआरा संघ आक्रोशित
15 उपजाति कोड में बांटने पर मछुआरा संघ आक्रोशित

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Published : Apr 24, 2023, 7:20 AM IST

15 उपजाति कोड में बांटने पर मछुआरा संघ आक्रोशित

पटना:बिहार में जातीय जनगणनाका कार्य चल रहा है. आए दिन इसकी खामियों को लेकर लेकर विभिन्न जातियों की आपत्ति आ रही है. जातीय जनगणना का कार्य शुरू हुए 1 सप्ताह हो गया है. इसमें निषाद समाज को जो आपत्ति थी वह अब तक दूर नहीं हुई है. जिसके बाद निषाद समाज अब आक्रोशित हो गया है. निषाद समाज में विभिन्न उपजातियां हैं और इन उप जातियों को 15 जाति के कोड में सरकार ने बांट दिया है. इसका बिहार मछुआरा संघ भी पुरजोर विरोध कर रहा है. संघ ने चेतावनी देते हुए कहा है कि-''सरकार जल्द यदि जातीय जनगणना में सभी 15 उप जातियों को एक जाति कोड में गणना नहीं करती है, तो आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश के मछुआरा समाज गांधी मैदान में एकत्रित होंगे और पटना की सड़कों पर उग्र आंदोलन करेंगे.''

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15 उपजाति कोड में बांटने पर मछुआरा संघ आक्रोशित: बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ के निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि निषाद समाज में कई उपजातियां हैं. इन उप जातियों को अलग-अलग जाति के तर्ज पर जातीय जनगणना में गिनती की जा रही है. इससे उनकी जो वास्तविक संख्या है, वह नहीं पता चल पाएगा. उन्होंने कहा कि उन लोगों का जो अनुमान है प्रदेश में निषाद समाज की आबादी 1.75 करोड़ से अधिक है. जो लगभग 14 फ़ीसदी के करीब है. विगत कुछ वर्षों से निषाद समाज की राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है. अब समाज राजनीति में अपनी उचित हिस्सेदारी ढूंढ रहा है. इसी को देखते हुए उनकी वास्तविक संख्या को कम दिखाने के लिए इस प्रकार का प्रयास किया गया है. निषाद समाज को 15 जातियों में बांट दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस को लेकर राज्य सरकार से पत्राचार चल रहा है. सरकार ने अत्यंत पिछड़े वर्ग को जांच के लिए दिया हुआ है.

''हमारी यही मांग है कि जिस प्रकार यादव जाति की उपजातियों को एक कोड में ही गिनती की जा रही है, उसी प्रकार निषाद समाज के विभिन्न उप जातियों को एक कोड में गिनती की जाए. सरकार ने इसको लेकर 15 दिन का समय मांगा है. लगभग 20 से 22 दिन में जातीय जनगणना का दूसरा चरण कंप्लीट हो जाएगा. ऐसे में सरकार से उनकी डिमांड है कि जल्द निषाद समाज की सभी उप जातियों को एक कोड में समाहित किया जाए. नहीं तो पटना की सड़कों पर निषाद समाज उग्र आंदोलन करेंगे.''- ऋषिकेश कश्यप, प्रबंध निदेशक, बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ

'सरकार नहीं चाहती की हमारी संख्या दिखे': बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ के अध्यक्ष प्रयाग सहनी ने कहा कि निषाद समाज के जो 15 उपजातियां हैं, उन्हें 15 अलग-अलग कोड दिया गया है. यह जातियां- 7-केवट, 11- कैवर्त, 21- गोड़ी, 22- गंगई, 23- गंगोता, 28- चांय, 35- तुरहा, 36- तियर, 42- नोनिया, 52- बेलदार, 53- बिंद, 64- मल्लाह, 65- मझवार, 67- मोरियारी और 73- वनपर हैं. उन्होंने कहा कि सरकार से अभी के समय पत्राचार चल रहा है. समय रहते सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है तो वह लोग न्यायालय का रुख करेंगे. इसके साथ ही प्रदेश के सभी जिलों से निषाद समाज पटना के गांधी मैदान में एकत्रित होंगे और सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे.

''जातीय जनगणना का उद्देश्य यह था कि विभिन्न जातियों की वास्तविक संख्या और उनका आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर का पता लगाया जा सके. लेकिन सरकार यदि उन्हें 15 जातियों में विभाजित करके गणना करेगी तो निषाद समाज की वास्तविक स्थिति प्रदेश में नहीं पता चल पाएगी. निषाद समाज की वास्तविक स्थिति पता चलने से यह समाज राजनीति में अपनी हिस्सेदारी खोजेगा और इसी के डर से सरकार की ओर से इस प्रकार का समाज विरोधी प्रयास किया गया है.''-प्रयाग सहनी, अध्यक्ष, बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ

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