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आधुनिक सोच की नींव रखने वाले 'बाबा साहब' का बिहार से है गहरा नाता, पढ़ें पूरी खबर - Bihar SC ST Federation

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की 130वीं जयंती देशभर में धूमधाम से मनाई जा रही है. वो एक साधारण दलित परिवार में पैदा हुए, लेकिन अपनी प्रतिभा और आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने अपने जीवन को ऐसा बनाया कि कोई भी उनसे प्रेरणा ले सकता है. लेकिन, आखिर क्या है आंबेडकर का बिहार से नाता. देखिए ये रिपोर्ट.

पटना
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Published : Apr 14, 2021, 6:03 PM IST

पटना: देशभर में संविधान निर्माता बाबा साहबभीमराव आंबेडकर की 130वीं जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है. भारत रत्न डॉक्टर भीमराव आंबेडकर एक विचारधारा का नाम है, जिन्होंने अपना सारा जीवन दलित, पिछड़े और शोषित लोगों के उत्थान में लगा दिया.

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'आधुनिक सोच की नींव रखी नींव'
उन्होंने संविधान निर्माण के साथ-साथ भारतीयों में आधुनिक सोच की नींव भी डाली. भीमराव आंबेडकर को बाबा साहब के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय राजनीतिज्ञ, न्यायविद और अर्थशास्त्री थे. बाबा साहब ने हिंदू जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी और छुआछूत के खिलाफ भेदभाव का विरोध किया.

महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था जन्म

महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था जन्म
बाबा साहब की 130वीं जयंती पर बिहार एससी एसटी फेडरेशन के महासचिव नरेन्द्र कुमार ने बताया कि उन्होंने अपनी महिला मित्र को पत्र लिखकर बताया था कि उनका जन्मदिन 14 अप्रैल को लोग मनाते हैं, लेकिन उनका जन्मदिन 16 अप्रैल को होता है, ऐसा उनके पिताजी ने भी उन्हें बताया था. इसलिए हम सभी इस पूरे महीने को ही उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं. बाबा साहब का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था.

बिहार से रहा गहरा नाता

बिहार से रहा बाबा साहब की गहरा नाता
नरेन्द्र कुमार ने बताया कि बिहार की भूमि से भी बाबा भीमराव आंबेडकर का गहरा संबंध रहा है. पटना का गांधी मैदान काफी ऐतिहासिक स्थान रहा है, यहां पर बाबा साहब आ चुके हैं. उस समय आरएल चंदारपुरी साहब थे और गांधी मैदान में एक सभा हुई थी, उसमें उनका आगमन हुआ था. उस वक्त भी पॉलिटिकल सिस्टम का शिकार बाबा साहब हुए थे. बिहार में भी आंबेडकर फाउंडेशन का गठन हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के समय में इसका गठन किया गया था.

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''कई लोगों का मानना है कि बाबा साहब केवल दलित वर्ग के लोगों के मसीहा थे, लेकिन ऐसा नहीं है. बाबा साहब संपूर्ण मानव जाति के मसीहा थे. महिलाओं को उचित सम्मान दिलाना बाबा साहब का पहला कदम था. जिसकी वजह से आज महिलाएं आत्मसम्मान के साथ जी रही हैं. नागरिकता और वोट का अधिकार उनका ही देन है. समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर करने में उनका जो योगदान रहा वो सिर्फ दलितों के लिए नहीं रहा बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए रहा है''- नरेन्द्र कुमार, एससी एसटी फेडरेशन, महासचिव बिहार

बाबा साहब ने सभी वर्गों के लिए किया काम

'दलित वर्ग के लोगों की स्थिति में सुधार'
उन्होंने कहा कि दलितों की स्थिति में आज सुधार आया है. आज कई बड़े पदों पर दलित लोग हैं. इस मामले में भारत अब एक विकसित देश के रूप में उभर रहा है. हालांकि, पिछले कुछ समय से बाबा साहब की संविधान के प्रति जो भावना थी, उसके साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है. आज के समय में सभी सिस्टम एक बार फिर जातीय आदार पर बंटते जा रहे हैं, जो कि दुखद है. हम लोग एक बार फिर आजादी की पूर्व की स्थिति में जा रहे हैं.

सम्मान के तौर पर कहा गया 'बाबा साहब'

'संविधान में अब तक हुए 104 संशोधन'
बाबा साहब उन्हें सम्मान के तौर पर कहा जाता है. भारत के संविधान में अब तक 104 संशोधन हो चुके हैं. जिनमें से कुछ संशोधन काफी विवादों में भी रहा है. बाबा साहब के संविधान में इतनी अच्छी व्यवस्थाएं की गई हैं कि समय के अनुसार जैसा जरूरत होता है अनुच्छेद में वैसा संशोधन किया जा सकता है.

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'गर्व के साथ बताएं अपनी पहचान'
नरेन्द्र कुमार ने कहा कि बाबा साहब का उपनाम बदलने की बात गलत है. सरनेम से व्यक्ति अपने समाज का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है. हमें इसे गर्व के साथ अपनी पहचान को बताना चाहिए और सननेम ऐसा होना चाहिए कि उससे उसके बारे में परिचय प्राप्त हो सके. इसी मानसिकती को हटाने के लिए ही आरक्षण की व्यवस्था की गई है.

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