पटना : हिन्दी साहित्य में दिनकर को राष्ट्रकवि का दर्जा प्राप्त है. उनकी देश को लेकर जो भूमिका रही है वो अद्वितीय रही है. इसीलिए दिनकर एकलौते ऐसे कवि हुए जिन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि मिली. इनकी अनगिनत कृतियां हैं. जिसने दिनकर को अन्य कवियों से अलग पहचान दिलाई. रश्मिरथी इनकी ऐसी प्रसिद्ध महाकृति है जसने इनके स्तर को राष्ट्रकवि की कतार में खड़ा कर दिया. आज ऐसे ही राष्ट्रकवि की 115वीं जन्म जयंती है.
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देश मना रहा दिनकर की 115वीं जयंती : दिनकर का जन्म पूर्व का मुंगेर और वर्तमान के बेगूसराय जिले के सिमरिया में 23 सितंबर 1908 में हुआ था. बेगूसराय से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. उसके बाद उन्हें 1934 में बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्ट्रार के पद पर तैनात किया गया. 4 वर्षों में 22 बार तबादला हुआ.
22 बार अंग्रेजी हुकूमत ने किया तबादला : करीब 9 वर्षों तक अलग-अलग क्षेत्रों में सब रजिस्ट्रार के पद पर दिनकर जी रहे. इस दौरान उन्होंने रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद गीत रचे. रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाएं प्रकाश में आई जो अंग्रेजी हुकूमत को नागवार गुजरी. जिस कारण 4 वर्षों में 22 बार उनका तबादला किया गया.
रश्मिरथी की काव्य रचना ने बनाया राष्ट्र कवि : दिनकर की रश्मिरथी ऐसी काव्य कृति है जिसने उन्हें राष्ट्रकवि बनाया. उस वक्त सभी की जुबान पर रश्मिरथी की पंक्तियां थीं. कृष्ण जब पांडवों की ओर से संदेशा लेकर चले थे तब उस वक्त का सीन उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से बड़ा ही सुंदर वर्णन किया था.