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डॉक्टर्स डे स्पेशल: जहां हुई पहली पोस्टिंग वहीं बने सिविल सर्जन, संकटमोचन डॉक्टर के रूप में है पहचान

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Published : Jul 1, 2020, 12:59 PM IST

अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी को बेहतर समझने वाले डॉ. विमल प्रसाद सिंह को एक संकटमोचन डॉक्टर के रूप में जाना जाता है. दिन हो या रात जब भी अस्पताल से इनके पास फोन पहुंचता है, वो बिना वक्त गवाएं जिस हालात में होते हैं उसी हालात में फौरन अस्पताल पहुंच जाते हैं.

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नवादाःडॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया गया है. भले ही इंसान को ऊपर बैठे भगवान का देन कहा जा रहा हो, लेकिन जमीन पर बैठे डॉक्टर के रूप में इस भगवान का भी कम योगदान नहीं होता है. उनके कंधे पर इंसानों के जन्म से लेकर मृत्यु तक से हिफाजत करने की जिम्मेदारी रहती है.

डॉक्टर को दिया गया भगवान का दर्जा
ऐसे ही जिम्मेदारी निभाने वाले, हर परिस्थिति में उपलब्ध रहने वाले और नवादा सदर अस्पताल के संकटमोचन डॉक्टर के रूप में पहचान पाने वाले डॉ. विमल प्रसाद सिंह है. जिनकी पहली पोस्टिंग नवादा में ही हुई थी और अब वह उसी जगह पर सिविल सर्जन जैसे महत्वपूर्ण पद को सुशोभित कर रहे हैं.

संकटमोचन डॉक्टर के रूप में पहचान पाने वाले हैं डॉ. विमल प्रसाद सिंह
डॉ. विमल प्रसाद सिंह का जन्म 10 मार्च 1954 में शेखपुरा जिले के हथियामा गांव में एक बेहद ही सामान्य परिवार में हुआ था. पिताजी स्व. विंद बहादुर सिंह किसान थे. डॉ. विमल जब महज 9 वर्ष के थे, तब मां कमला देवी का साया सिर से उठ गया, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई जारी रखी.

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PMCH से MBBS और DMCH से MS
विमल प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल से की, फिर मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज से आईएससी पास किया. उसके बाद मेडिकल की तैयारी में लग गए. पीएमसीएच से एमबीबीएस किया और फिर उसके बाद डीएमसीएच से एमएस तदुपरांत सरकारी नौकरी में आ गए.

1981 में नवादा के वारसलीगंज में हुई पहली पोस्टिंग
बता दें कि विमल प्रसाद की 1981 में पहली पोस्टिंग नवादा जिला के वारिसलीगंज प्रखंड में हुई. जहां दो वर्षों तक काम करने के बाद फिर अन्य कई जिलों में सेवाएं दी और फिर 1987 में वापस नवादा आ गए. जिसके बाद 1999 तक नवादा में रहे और फिर कुछ दिनों के लिए अन्य जिलों में सेवाएं दी. फिर 2008 में नवादा सदर अस्पताल में पदस्थापित हुए, तब लगातार सदर अस्पताल में सेवाएं देते रहे.

स्वास्थ्य विभाग ने सिविल सर्जन का दायित्व सौंपा
इस बीच सदर अस्पताल का उपाधीक्षक भी बनाया गया और हाल ही में उन्हें स्वास्थ्य विभाग ने सिविल सर्जन का दायित्व सौंपा है. जिसे बखूबी निभा रहे हैं. सिविल सर्जन बन जाने के बाद भी आज उनके अंदर अधिकारी वाला रौब नहीं है. सभी वैसे ही मिलते हैं, जैसे पहले मिलते रहते थे.

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बेटे-बहु भी हैं डॉक्टर और संकट मोचन
डॉ. विमल के दो लड़के और एक लड़की है. बड़े लड़के और बहू इंग्लैंड में डॉक्टर हैं. वहीं छोटा बेटा और बहु बिहार में ही डॉक्टर हैं. कुल मिलाकर गरीबी से जूझता हुआ एक परिवार समृद्ध हो चुका है.

बेहतर समझते हैं अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी
अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी को बेहतर समझने वाले डॉ. विमल प्रसाद सिंह को एक संकटमोचन डॉक्टर के रूप में जाना जाता है. दिन हो या रात जब भी अस्पताल से इनके पास फोन पहुंचता है, वो बिना वक्त गवाएं जिस हालात में होते हैं उसी हालात में फौरन अस्पताल पहुंच जाते हैं. डॉ. विमल डॉक्टरों के बीच ही लोकप्रिय नहीं हैं. बल्कि नवादा के आम जनमानस में भी उनकी लोकप्रियता सर चढ़ कर बोलता है.

सारे प्रॉब्लम का करते हैं शॉटआउट
उनके बारे में डॉ. बी बी सिंह कहते हैं कि उनकी यह खासियत रही है कि किसी भी समस्या के लिए चाहे अस्पताल से हो या फिर पेसेंट से संबंधित, अस्पताल से जब भी उन्हें फोन जाता था. वो एक कॉल पर हाजिर हो जाते थे और सारे प्रॉब्लम का शॉटआउट करते देते थे.

संकटमोचन हनुमान की तरह हाजिर रहते हैं डॉ. विमल प्रसाद
वहीं, आम लोगों का कहना है कि, हमलोगों का सौभाग्य है कि विमल बाबू जैसे सिविल सर्जन मिले हैं वो ऐसे शख्स हैं जिन्हें अगर अस्पताल से कॉल चल जाता था, तो जैसे घर पर रहते थे. उसी हालत में भाग कर आ जाते थे. चाहे हाफ तक पेंट मोड़ा हुआ हो, चप्पल ही पहने क्यूं न हो. हमेशा संकटमोचन हनुमान की तरह हाजिर रहते थे.

डॉ. बीसी रॉय के जन्मदिवस पर मनाया जाता है डॉक्टर्स-डे
बता दें कि भारत के प्रतिष्ठित डॉ. विधान चंद्र रॉय के जन्म दिवस के रूप में भारत में 1 जुलाई को डॉक्टर्स-डे मनाया जाता है. वो पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री मंत्री भी रहे हैं.

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