भागलपुर:जिले में अंग प्रदेश की पारंपरिक विषहरी पूजा धूमधाम से मनाई गई. अंग प्रदेश की प्राचीन दंत कथाओं में से एक बिहुला विषहरी से नारी सशक्तिकरण का उदाहरण मिलता है. प्राचीन काल में अंग प्रदेश में बिहुला विषहरी की दंत कथा बताई जाती है. जिसमें नारी सशक्तिकरण के साथ- साथ अंकुश का प्राचीन इतिहास मंजूषा भी निकल कर सामने आता है.
पारंपरिक चित्र गाथा है उकेरी
मंजूषा भी मधुबनी पेंटिंग की तरह एक पारंपरिक चित्र गाथा है. जिसमें बिहुला विषहरी की पूरी चित्र गाथा उकेरी जाती है. इन दिनों मंजूषा को लेकर सरकार काफी जागरूक हुई है. जहां भागलपुर की मंजूषा को सिल्क व्यवसाय और हैंड क्राफ्ट के जरिए पूरे देश में फैलाया जा रहा है. वहीं पर बिरला विश्वरी के चित्र गाथा मंजूषा को भागलपुर से नई दिल्ली जाने वाली विक्रमशिला पर भी उकेरा गया है. ताकि मंजूषा को एक पहचान मिल सके और लोग अंग प्रदेश की संस्कृति को भली-भांति समझ सकें.
प्राचीन मान्यता है
प्राचीन काल से ही सती बिहुला एवं मनसा विषहरी की पूजा चंपानगर और आसपास के इलाकों में होती आ रही है. ऐसा मानना है की शिव की मानस पुत्री मनसा विषहरी ने अपनी पूजा करवाने को लेकर शिवभक्त चांद सौदागर को काफी यातनाएं दी. उनके सभी पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया गया. अंतिम पुत्र बाला लखींद्र की शादी बिहुला से हुई थी शादी के बाद रहने के लिए और मनसा बिषहरी से अपने अंतिम पुत्र को बचाने के लिए शान सौदागर ने लोहा बांस का घर बनवाया था.