नवादाः नवादा जिले से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ककोलत जलप्रपात. यह एक ऐसा जलप्रपात है जो सुंदरता और प्राकृतिक सौंदर्य में देश के किसी भी जलप्रपात से कम नहीं है. गर्मियों में काफी लोग दूर-दूर से यहां पहुचते हैं. इसे बिहार का नियाग्रा या फिर बिहार का कश्मीर भी कहा जाता है.
इस जगह पर आए सैलानियों को शीतलता के साथ-साथ शांति और सुकून भी मिलता है. यह जगह छुट्टी बिताने के प्रमुख ठिकाने बनते जा रहे हैं. प्राकृतिक सौंदर्य से आवरित यह जगह सैलानियों को यहां तक खींच तो लाती है पर उनके लिए जो व्यवस्थाएं होनी चाहिए वो नहीं मिल पा रही है.
जलप्रपात से जुड़े हैं कई पौराणिक व धार्मिक मान्यतायें
सदियों से झरझर बहती इस जलप्रपात का कई पौराणिक व धार्मिक मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि अज्ञानतावास के दौरान पांडव यहां पर निवास किए थे. महाभारत में वर्णित काम्यक वन वर्तमान में काकोलत के नाम से विख्यात है. पांडव ने निवास के क्रम में यहां भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने के लिए पधारे थे. ये दुर्गा सप्तशती के रचयिता मार्कडेय ऋषि का तपोस्थल है. किंग्वादन्तियों का कहना है कि, इस जल में नहाने से शार्प योनि और गिरगिट योनि में जन्म लेने से मुक्ति मिल जाती है.
बंद हो गया सतुआनी मेला
वर्षों से लगते आ रहे सतुआनी मेला जिसे बिसुआ मेला के नाम से जाना जाता था वो भी समुचित व्यवस्था नहीं दे पाने के कारण अब लगभग बंद ही हो चुका है. मेले के पौराणिकता के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर राजा नृग गिरगिट योनि में निवास करते थे. जिसे महाभारत काल मे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने चरण स्पर्श पर उन्हें मुक्ति दी थी. जिसके बाद से यहां के आसपास के लोग सतुआनी के मौके पर स्नान करने के लिे मेला लगता था. वो धीरे-धीरे बड़े मेले का रूप ले लिया लेकिन अब वो भी खत्म हो गया है.
अभी तक नहीं मिला पर्यटन स्थल का दर्जा
दशकों से ककोलत को पर्यटन स्थल का दर्जा देने की मांग की जा रही है. लेकिन अभी तक सरकार की ओर से इसे पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं दिया जा सका है. पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन पर पर्यटन स्थल का दर्जा मिलने की घोषणा की आस जगी थी. लेकिन सीएम ने पर्यटन स्थल का दर्जा देने के बजाय 2 सौ करोड़ के लागत से सौंदर्यीकरण करवाने का आश्वासन दिया था. जिसके बाद से कुछ काम हुए हैं पर अभी भी पूर्णरूप से सौंदर्यीकरण के लिए बहुत काम होने बाकी है.