नवादा:बिहार केपटना-नवादा एनएच-31 पर स्थित मंदिर और मजार साम्प्रदायिक सौहार्द्र का अद्भुत मिसाल पेश करता है. मंदिर और मजार दोनों की दीवारें मिलती है. मंदिर के एक तरफ बाबा बुखारी की मजार तो दूसरी तरफ महावीर हनुमान बसते (Mazar And Hanuman Temple) हैं. यहां हर समुदाय के लोग आते-जाते हैं. गुरुवार और शुक्रवार को मजार पर लोगों की लंबी कतार लगी होती है. जबकि मंगलवार और शनिवार को संकटमोचन मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है.
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मजार का इतिहास:कहा जाता है कि बाबा हजरत सैय्यद शाह जलालुद्दीन बुखारी औरंगजेब के समय में सोवियत रूस के बोखरा से यहां सद्भवना का संदेश देने आये थे. अपनी उद्देश्य में वो इतने रम गए की उनकी ख्याति देश में चारों ओर फैल गई. जब उनका देहांत हुआ तो उनके अनुयायियों ने यहां पर मजार बनाया दिया और साथ में याद के तौर पर एक पाकुड़ का पेड़ भी लगा दिया.
प्रत्येक वर्ष उर्स का आयोजन:किवदंतियों का कहना है कि बिहारशरीफ के बाबा मखदूम शाह यहां फातिया पढ़ने अक्सर आया करते थे. कहा जाता है कि जो लोग उर्स पर अजमेर शरीफ किसी कारणवश नहीं जा पाते हैं तो यहीं उर्स पर चादर चढ़ाने के लिए आते हैं. यहां उर्दू महीना का रज्जब 5 और 6 को प्रत्येक वर्ष उर्स का आयोजन होता है.
क्या कहते हैं खादिम मुमताज आलम मुन्ना:मजार का देखरेख कर रहे हलालीउद्दीन के पुत्र मुमताज आलम कहना है कि यहां सब धर्म के लोग आते हैं. यहां जो कोई भी सच्चे मन से अपनी मुरादें मांगता है, उसकी मुरादें जरूर पुरी होती है. यहां से आजतक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है.