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नवादा: कभी जंगल की लकड़ी बेचकर करते थे जीवनयापन, अब बंजर भूमि पर उगा रहे फसल - नवादा का रजौली प्रखंड

महिला विकास समिति की संचालिका लीला कुमारी ने बताया कि बंजर जमीन को हमने चयनित किया और लोगों को इसके लिए जागरूक किया.

people growing crops on non fertile land in nawada
बंजर भूमि पर मेहनत कर उगा रहे फसल

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Published : Dec 8, 2019, 11:13 PM IST

नवादा:जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र रजौली में एक ऐसा गांव है, जहां के लोगों की आजीविका का एकमात्र साधन कभी जंगल का लकड़ी हुआ करता था. लेकिन आज वही लोग अपनी मेहनत से लगभग 40 एकड़ बंजर भूमि में फसल उगाकर भरपेट भोजन कर ले रहे हैं. साथ ही उसे बेचकर अपनी जरूरतों को भी पूरा कर रहे हैं.

खेती करते ग्रामीण

बंजर भूमि को बनाया उपजाऊ
रजौली प्रखंड के दलित बाहुल्य एकचटवा गांव के लोग खासकर महिलाओं ने अपनी मेहनत से एक बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया. यह जमीन विनोबा भावे ने अपने भूदान आंदोलन के समय इन दलित-महादलित परिवार को दिया था. लेकिन पहाड़ी क्षेत्र और पानी की समस्या के कारण लोग खेती के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. लेकिन नाबार्ड और महिला विकास समिति की संचालिका लीला कुमारी के सहयोग से आज लोग धान, गेंहू के अलावे साग-सब्जी भी उपजा पा रहे हैं.

पेश है रिपोर्ट

क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीण ने बताया कि स्कूल में जिस तरह से बच्चों को पढ़ाया जाता है, उसी तरीके से लीला दीदी ने पढ़ा कर हम लोगों का सहयोग किया. अब हम लोग बहुत सारे फसल उपजा लेते हैं. उन्होंने बताया कि पहले लकड़ी बेचते थे, तो उससे बाजरा का आटा लाकर खाते थे और अपने बच्चे को पालते-पोसते थे. लेकिन जब से महिला समिति की ओर से पानी की व्यवस्था हुई है. उससे अब धान-गेहूं उपजने लगा है.

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कैश क्रॉप खेती के लिए किया जागरूक
महिला विकास समिति की संचालिका लीला कुमारी ने बताया कि बंजर जमीन को हमने चयनित किया और लोगों को इसके लिए जागरूक किया. हमने उन्हें खेती के बारे में समझाया और कहा कि एक तो आपको अपनी जमीन मिल जाएगी और इससे आपका जीवनयापन भी अच्छे से हो जाएगा. इसके तहत उन्हें कैश क्रॉप खेती के लिए जागरूक किया गया और फिर बंजर भूमि में लगे झाड़ी को हटवाया गया.

इसी बीच एसडीपी योजना के तहत नाबार्ड की ओर से 10 लाख की सहायता मिली. उन्होंने कहा कि लोगों ने भी काफी मेहनत किया और उनके मेहनत की वजह से बंजर भूमि उपजाऊ बन गई और सभी लोग खुशहाली की जिंदगी जी रहे हैं.

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