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धरती फाउंडेशन ने दशरथ मांझी के परिवार को लिया गोद, संकट से गुजर रहा था परिवार - the mountain man

लॉकडाउन के दौरान नाजुक परिस्थितियों से गुजर रहे दशरथ मांझी के परिवार को धरती फाउंडेशन ने गोद लिया. इसके तहत परिवार को प्रति माह एक हजार रुपये दिए जाएंगे और राशन सहित अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराई जाएगी.

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Published : Jul 22, 2020, 11:13 PM IST

नवादा:इस कोरोना वैश्विक महामारी को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के कारण बिहार के प्रसिद्ध 'द माउंटेन मैन' के नाम से विख्यात गहलौर निवासी दशरथ मांझी का परिवार इन दिनों बहुत ही नाजुक परिस्थितियों से गुजर रहा है. ऐसे हालातों में जिले के धरती फाउंडेशन के संस्थापक कवि निशांत भारद्वाज और उनकी टीम अपनी सामाजिक उत्तर दायित्व को निभाते हुए द माउंटेन मैन परिवार के लोगों की देख-रेख करने से लेकर हर प्रकार की आवश्यक जरूरतों की पूर्ति करने के लिए आगे आई है.

धरती फाउंडेशन के संस्थापक ने उस महान समाज के वास्तविक नायक के परिवार को इस तरह की नाजुक परिस्थितियों में को गोद लेने का संकल्प लिया है.उन्होंने बताया कि उनके परिवार की अब देख-रेख की जिम्मेदारी अब धरती फॉउंडेसन की है. इस पहल और संकल्प के तहत गोद लिए गए परिवार को प्रति माह एक हजार रुपये नियमित रूप से राशन सहित अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराई जाएगी.

कौन हैं दशरथ मांझी
बताते चलें कि दशरथ मांझी 'द माउंटेन मैन' गया के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे. इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर एक सड़क बना डाली. 22 वर्षों के अथक परिश्रम के बाद दशरथ के बनाए सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी को 55 किलोमीटर से 15 किलोमीटर कर दिया.

पत्नी की निधन के बाद लिया संकल्प
कहा जाता है कि गहलौर में उन दिनों ना बिजली थी न पानी ऐसे में छोटी से छोटी जरूरतों के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था. दशरथ मांझी को गहलोत पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जुनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे ओर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गई और उनका निधन हो गया.

दशरथ मांझी की पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई क्योंकि बाजार दूर था और समय पर दवा नहीं मिल सकी. यह बात उनके मन में घर कर गई. इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेंगे और अतरी और वजीरगंज की दूरी को कम करेंगे. बिहार की गहलौर घाटी ताजमहल से कम नहीं मानी जाती है.

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