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नालंदा: कोरोना के बीच चमकी की दस्तक से प्रशासन अलर्ट, कार्यशाला का किया गया आयोजन

चमकी बुखार(इन्सेफेलाइटिस) को लेकर जिला प्रशासन सतर्क और सजग नजर आ रहा है. नालंदा में कार्यशाला का आयोजन कर लोगों को इसके लक्षण और रोकथाम के उपाय बताए गए.

मस्तिष्क ज्वर की रोकथाम के लिए कार्यशाला आयोजित
मस्तिष्क ज्वर की रोकथाम के लिए कार्यशाला आयोजित

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Published : May 5, 2020, 10:28 PM IST

नालंदा: जानलेवा कोरोना वायरस के बीच बिहार में चमकी बुखार का प्रकोप दिखने लगा है. इसकी रोकथाम के लिए लगातार सरकार और प्रशासन की ओर से जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. इसी क्रम में नालंदा में भी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. गर्मी के दिनों में एईएस/जेई नामक बीमारी बच्चों के लिए जानलेवा साबित होती है. ऐसे में नालंदा में इस बीमारी को दूर रखने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया.

पिछले साल आए थे 5 मामले
बिहार शरीफ के सदर अस्पताल स्थित सभाकक्ष में आयोजित इस कार्यशाला में मस्तिष्क ज्वर के लक्षण और बचाव के बारे में बताया गया. अब तक के शोध में पाया गया है कि कुपोषण ही इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण है. सिविल सर्जन डॉ. राम सिंह ने बताया कि एईएस एक घातक बीमारी है. उन्होंने बताया कि अगर इससे कोई बच्चा ग्रसित हो जाता है तो उसे बेहतरीन सिस्टम के माध्यम से बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह बीमारी बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके में अत्यधिक फैलती है. लेकिन, नालंदा जिले में पिछले साल 5 मामले सामने आए थे. जिसमें 4 मरीज को ठीक किया गया था.

चाइल्ड स्पेशलिस्ट ने दी जानकारी
चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर श्याम बिहारी ने बताया कि गर्मी और नमी के कारण यह बीमारी अत्यधिक फैलती है. बच्चों का भूखे सोना भी इस बीमारी का बड़ा कारण है. उन्होंने बताया कि बीमारी के लक्षण आने के बाद सही तरीके से देखभाल नहीं होने पर यह जानलेवा हो जाती है इसलिए सावधानी रखना, सही समय पर बीमारी की पहचान करना और इसका सही इलाज करके ही बीमारी को दूर भगाया जा सकता है.

चमकी से बचने के लिए अपनाए ये उपाय
बता दें कि अत्यधिक गर्मी और नमी के मौसम में यह बीमारी फैलती है. 1 वर्ष से लेकर 15 वर्ष तक के बच्चे इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. इस बीमारी से बचने के लिए बच्चों को तेज धूप में जाने से बचाएं, बच्चों को दिन में दो बार स्नान कराएं, गर्मी के दिनों में बच्चों को ओआरएस या नींबू पानी चीनी का घोल पिलाएं, रात में बच्चों को भरपेट खाना खिला कर ही सुलाएं.

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