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नालंदा में खरना का प्रसाद बनाते समय व्रती की साड़ी में पकड़ी आग, बचाते समय पोता और पोती भी झुलसे - नालंदा न्यूज

Chhath puja 2023 चार दिवसीय महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. आज शनिवार को खरना है. छठ व्रती खरना का प्रसाद स्वयं तैयार करती हैं. नालंदा में खरना का प्रसाद तैयार करते समय एक घर में हादसा हो गया. एक महिला बुरी तरह झुलस गयी. हादसे में महिला का पोता और पोती भी झुलस गया. पढ़ें, विस्तार से.

नालंदा
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 18, 2023, 7:29 PM IST

नालंदा: बिहार के नालंदा में शनिवार को छठ के लिए खरना का प्रसाद बनाते समय तीन लोग झुलस गये. ये तीनों दादी, पोता और पोती हैं. गंभीर रूप से झुलसी महिला को इलाज के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. गंभीर रूप से झुलसी महिला का नाम जानकी देवी (75) पति गणेश भारती है. डॉक्टर ने प्राथमिक उपचार के बाद महिला को बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया.

कैसे हुआ हादसाः घटना नगर थाना बिहार के सकुन्त मोहल्ला की है. बताया जाता है कि जानकी देवी घर में खरना का प्रसाद तैयार कर रही थी. तभी उसकी के एक हिस्से में आग पकड़ ली. महिला चिल्लाने लगी. दादी की साड़ी आग लगा देख उनका पोता उत्तम भारती और पोती उमा भारती बचाने का प्रयास करने लगी. इस क्रम में वे दोनों भी झुलस गये. फिल्हाल सभी घायलों का इलाज चल रहा है. जानकी देवी की हालात नाजुक बनी है. इस घटना के बाद से त्योहार की खुशियां मातम में बदल गई है.

निर्जला उपवास होगा शुरूः बता दें कि चार दिवसीय छठ महापर्व शुक्रवार को नहाय खाय से शुरू हो गया. नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर को मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं. जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है. इसीलिए इसे खरना कहते हैं. इस दिन व्रती शुद्ध अंतःकरण से कुलदेवता और सूर्य एवं छठी मैया की पूजा करके गुड़ से बनी खीर का नावेद अर्पित करती हैं. देवता को चढ़ाए जाने वाली खीर को व्रती स्वयं अपने हाथों से पकाते हैं. खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में रहते हैं. 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है.

खरना का महत्व:खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण. व्रती खरना कर तन और मन को शुद्ध और मजबूत बनाते हैं, ताकि अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत कर सकें. मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में गुड़ से बनी रसिया, खीर, रोटी का भोग छठ माई को लगाया जाता है. इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस दौरान ध्यान रखा जाता है कि किसी प्रकार का कोई कोलाहल ना हो, एकदम शांत वातावरण में व्रती प्रसाद ग्रहण करती है. मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ ही छठी मईया घर में प्रवेश कर जाती है.

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