नालंदा: बिहार केमुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के गृह जिला नालंदा में ही स्वास्थ्य व्यवस्था वेंटिलेटर पर चल रहा है. मामला बिहार शरीफ मुख्यालय से महज 8 किमी दूर डुमरावां गांव (Dumrawan Village Nalanda) का है, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ग्रामीण विकास कार्य मंत्री श्रवण कुमार (Minister Shravan Kumar) का गृह क्षेत्र है. इस गांव में 5000 लोगों की आबादी के बीच बना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सह उपकेंद्र (Dumrawan Health Sub Center) विभागीय लापरवाही का दंश झेल रहा है.
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अस्पताल बना पशुओं का चारागाह: यहां करोड़ों रुपये की लागत से बना यह स्वास्थ केंद्र आज खुद ही अस्वस्थ महसूस कर रहा है. स्थानीय लोगों की मानें तो यह करीब 6 वर्ष पहले बना था जिससे कि गांव के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराया जाए लेकिन, स्वास्थ विभाग की अनदेखी की वजह से यहां के भवन की स्थिति जर्जर हो चुकी है. अब इस स्वास्थ्य केंद्र में मवेशी और उसके चारा ( Hospital Turned Pasture In Nalanda ) रखे जाते हैं.
बदहाल अस्पताल से ग्रामीणों में नाराजगी: अस्पताल की ऐसी हालत के कारण ग्रामीणों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि चुनाव के वक्त इस इलाके के विधायक सह बिहार सरकार में मंत्री श्रवण कुमार द्वारा आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही इसे बना दिया जाएगा. लेकिन विभागीय उदासीनता की भेंट यह उपकेंद्र चढ़ गया है.
"श्रवण कुमार आए थे आश्वासन दिए कि इसको बनवा देंगे लेकिन कुछ भी नहीं किए. डुमरावां स्वास्थ्य उपकेंद्र की स्थिति खराब है. इमरजेंसी होने पर मरीजों को बिहार शरीफ लेकर जाना पड़ता है."- दिलचंद कुमार, ग्रामीण
"कभी कभी आते हैं दर्द बुखार की दवा लेने. फायदा हुआ तो ठीक नहीं तो प्राइवेट हॉस्पीटल जाते हैं. यहां तो बकरी पठरु बंधी रहती है."- शिबू देवी, ग्रामीण
ANM करती हैं मरीजों का इलाज:अस्पताल फिलहाल एक ANM के सहारे जर्जर भवन में चल रहा है. एएनएम सिर्फ सिर दर्द और बुखार की दवा मरीजों को देतीं हैं. अस्पताल में एक डॉक्टर की तैनाती है लेकिन डॉक्टर साहब मरीजों को देखने के लिए आते ही नहीं हैं. वहीं, इस मामले में वहां मौजूद ANM अंजनी कुमारी ने बताया कि यहां कोई सुविधा नहीं है, जरूरी चीजों के लिए हमें बाहर जाना पड़ता है.
"यहां बाथरुम और पानी की व्यवस्था नहीं है. एक ही डॉक्टर हैं. आज उनका कहीं और ड्यूटी है."- अंजनी कुमारी,ANM
बिहार में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था:बता दें कि देश में एक लाख की आबादी पर औसतन बेड की संख्या 24 है जबकि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (आईपीएचएस-2012) के मानक के अनुसार प्रति एक लाख की जनसंख्या (2001 की जनगणना के अनुसार जिलों की औसत आबादी) पर जिला अस्पतालों में कम से कम 22 बेड अवश्य होने चाहिए. इसी मानक के अनुसार बिहार के 36 सरकारी जिला अस्पतालों में महज तीन में ही चिकित्सक उपलब्ध हैं.
डॉक्टर से लेकर नर्सों तक का अभाव: प्रतिशत के आधार पर यह देखें तो यह आंकड़ा महज 8.33 फीसद आता है. मानक के अनुरूप केवल छह अस्पतालों में स्टॉफ नर्सें हैं. इसी तरह मात्र 19 अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद हैं. प्रदेश के शेष अस्पतालों में मानक के अनुसार न तो डॉक्टर हैं, न ही स्टाफ नर्स या पैरामेडिकल.
बेड की भी नहीं व्यवस्था: इतना ही नहीं, रिपोर्ट की माने तो 100 बेड के एक अस्पताल में 29 डॉक्टर, 45 स्टाफ नर्स और 31 पैरामेडिकल स्टाफ होने चाहिए. वैसे देश के कुल 742 जिलों में महज 101 जिलों के सरकारी अस्पताल में ही सभी 14 तरह के विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं. इसी तरह केवल 217 जिला अस्पतालों में ही प्रति एक लाख की आबादी पर 22 बेड पाए गए.
28 हजार से अधिक की आबादी पर एक डॉक्टर:आपको याद होगा कि, पिछले साल पटना हाईकोर्ट में सरकार ने खुद ही बताया था कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों तथा नर्सिंग स्टाफ के 75 फीसद रिक्त पड़े हुए हैं. देश में जहां लगभग 1,500 की आबादी पर एक चिकित्सक मौजूद है, वहीं बिहार में 28 हजार से अधिक की आबादी पर एक डॉक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए.
मार्च 2021: इस दौरान जब शोर मचा तो बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने विधानसभा में यह कहा कि प्रदेश में डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुरूप चिकित्सक की उपलब्धता है. हालांकि यह भी सच है कि राज्य सरकार चिकित्सकों की विभिन्न पदों पर नियुक्ति करने की भरपूर कोशिश कर रही है. लेकिन, इसकी प्रक्रिया काफी धीमी है.
CAG ने खोली स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल:अब जरा कैग की रिपोर्ट को भी देख लेते है. मार्च 2022 में बिहार विधानसभा में कैग की रिपोर्ट पेश की गई. इस रिपोर्ट ने बिहार की स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल कर रख दी. रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2005 और साल 2021 में कोई अंतर नहीं है. बिहार के जिला अस्पतालों में आवारा कुत्ते घूमते हैं. 36 जिला अस्पताल में से 9 बिना ब्लड बैंक के कार्यरत हैं. जांच में यह पाया गया है कि जिला अस्पतालों में बेड की भारी कमी है. इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड की तुलना में बेड की कमी 52 से 92% के बीच थी. इसी के साथ कैग ने अनुशंसा की है कि आवश्यक संख्या में डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल और अन्य सहायक कर्मचारियों की भर्ती सुनिश्चित हो. जिला अस्पतालों में पर्याप्त मानव बल, दवाओं और उपकरणों की उपलब्धता की निगरानी की जाए.
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