नालंदाःजिले की ऐतिहासिक सूर्यनगरी बड़गांव को सूर्य उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है. बड़गांव का सूर्य मंदिर दुनिया के 12 सूर्य मंदिरों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करने और यहां के तालाब में स्नान करने से हर मनोकामना पूरी होती है. यही वजह है कि देश के कई जगहों से काफी संख्या में लोग यहां आकर छठ महापर्व करते हैं.
सूर्य तालाब के पानी से ही बनता है लोहंडा का प्रसाद
लोक आस्था के महापर्व छठ के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु बड़गांव सूर्य धाम पहुंचते हैं. इस मौके पर श्रद्धालु 4 दिनों तक बड़गांव में रहकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं. सूर्य तालाब में स्नान करते हैं. छठ पर्व के दौरान बड़गांव सूर्य तालाब के पानी से ही लोहंडा का प्रसाद बनाया जाता है. यह काफी पुरानी परंपरा है, जो लगातार जारी है. इस तालाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग और कई अन्य बीमारी दूर होती है.
बड़गांव सूर्य मंदिर में पहुंचे लोग और जानकारी देते पुजारी श्री कृष्ण ने दी थी राजा शाम्ब को सूर्य उपासना की सलाह
बताया जाता है कि महर्षि दुर्वासा जब भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका गए थे, उस समय भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ विहार कर रहे थे. उसी दौरान अचानक किसी बात पर भगवान श्री कृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब को हंसी आ गई. महर्षि दुर्वासा ने उनकी हंसी को अपना उपहास समझ लिया और राजा शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. इसके बाद कृष्ण ने राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग के निवारण के लिए सूर्य की उपासना की सलाह दी.
बड़गांव में 49 दिनों तक रहे थे राजा शाम्ब
श्री कृष्ण के आदेश पर राजा शाम्ब सूर्य उपासना के लिए निकल पड़े. रास्ते में उन्हें प्यास लगी. राजा शाम्ब अपने साथ में चल रहे सेवकों को पानी लाने का आदेश दिया. घना जंगल होने के कारण पानी दूर-दूर तक नहीं मिला. एक जगह गड्ढे में पानी तो था लेकिन वो गंदा था. सेवक ने उसी गड्ढे का पानी लाकर राजा को दिया. राजा ने पहले उस पानी से हाथ पैर धोये उसके बाद उस पानी से अपनी प्यास बुझाई. पानी पीते ही उन्होंने अपने आप में परिवर्तन महसूस किया. उसके बाद राजा शाम्ब कुछ दिनों तक उसी स्थान पर गड्ढे में पानी का सेवन करते रहें. 49 दिनों तक उन्होंने बड़गांव में रह कर भगवान सूर्य की उपासना की और उन्हें श्राप से मुक्ति मिली.
बड़ी संख्या में श्रद्धालु करते हैं भगवान सूर्य की उपासना
राजा शाम्ब ने ही उस गड्ढे वाले स्थान की खुदाई कर तालाब का निर्माण कराया. तालाब की खुदाई के दौरान सात घोड़े पर सवार भगवान सूर्य की मूर्ति मिली. उस मूर्ति को तालाब से कुछ दूरी पर स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया गया. तब से यहां छठ महापर्व के मौके पर भगवान सूर्य की उपासना शुरू हुई. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान सूर्य की उपासना करते हैं और मन्नतें मांगते हैं. कहा जाता है कि यहां तालाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग व्याधि दूर होती है. वहीं लोग यहां वंश की वृद्धि के लिए भी अपनी मनोकामना मांगते हैं. इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है.