मुजफ्फरपुर: बिहार में मुजफ्फरपुर के रामदयालुनगर क्षेत्र की रहने वाली सुनैना देवी कुछ दिनों पहले तक घरों में चौका-बर्तन कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं. इनके पति रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए थे. इसके बाद घर में दो बच्चों को पालना और घर की रह जरूरत पूरी करने की जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गई थी. यही सुनैना अब प्रतिदिन 250 से 300 रुपये कमा रही हैं.
यह कहानी सिर्फ सुनैना की नहीं है. ऐसी ही कहानी रेखा की भी है. रेखा के पति भी मुंबई में काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन से पहले ही वहां से वापस मुजफ्फरपुर लौट आए. उनके लौट जाने के बाद लॉकडाउन में सबकुछ बंद हो गया और घर में खाने के लाले पड़ गए. मगर रेखा ने हिम्मत नहीं हारीं और प्रशिक्षण लेकर 'बापू' का चरखा थाम लिया. आज रेखा भी रोजाना 250 रुपये कमा रही हैं.
'बनना है आत्मनिर्भर'
पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना संक्रमण काल में आत्मनिर्भरता का जो संदेश दिया तो कई महिलाओं ने भी अब आत्मनिर्भर बनने की ठान ली. मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में करीब 3,000 घरेलू कामगाार महिलाएं हैं, जो लॉकडाउन में बेरोजगार हो गईं. कोरोना के भय से लोगों ने इन्हें काम से हटा दिया. इन महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था 'संबल' इनके लिए संबल बनकर सामने आई और इन्हें चरखे का प्रशिक्षण देना शुरू किया.
दिया जा रहा प्रशिक्षण
ऐसी महिलाओं को संगठित करने वाली और 'संबल' की प्रमुख संगीता सुहासिनी ने बताया, 'एक तरफ इनका काम बंद हो गया और दूसरी तरफ इनके पति दूसरी जगह से बेरोजगार हो लौट रहे हैं. हमने इस संबंध में खादी ग्रामोद्योग संघ से बात की. तब उन्होंने एक चरखा उपलब्ध करवाया और ऐसी महिलाओं को ग्रुप बनाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है.'