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Khudiram Bose : वो वीर, जिसने 18 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी को लगाया गले

Khudiram Bose हाथों में भागवत गीता और चेहरे पर मुस्कान लेकर फांसी के फंदे को चूमने वाले सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस (khudiram bose youngest freedom fighter) की आज जयंती है. उनका जन्म आज ही के दिन 1889 को है. फांसी के वक्त उनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी. आइए जानते हैं खुदीराम बोस की वो बाते जो हर भारतीय को जाननी चाहिए. पढ़ें

खुदीराम बोस की जयंती
खुदीराम बोस की जयंती

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Published : Dec 3, 2022, 2:20 PM IST

मुजफ्फरपुर: खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर (Khudiram Bose Birth Anniversary), 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. अपने स्कूल के दिनों में खुदीराम बोस आजादी के लिए आंदोंलनों में शामिल हो गए थे. महज 18 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई थी.

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खुदीराम बोस की जयंती :खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था. लेकिन मुजफ्फरपुर खुदीराम बोस की कर्मभूमि थी. खुदीराम बोस देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक थे. 18 साल की उम्र में भारत माता के लिए फांसी का फंदा चूम लिया था. उनके साहस और निर्भिकता से अंग्रेजी हुकूमत कांप उठी थी. खुदीराम बोस ने वर्ष 1908 में मुजफ्फरपुर में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था.

आंदोलन बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया: 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में बोस आंदोलन में कूद पड़े. 28 फरवरी 1906 को पहली बार इस स्वतंत्रतता सेनानी को गिरफ्तार किया गया. लेकिन अंग्रेजों को चकमा देकर वे भाग निकले. 6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया. 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले. लगभग 2 महीने बाद अप्रैल में फिर से पकड़े गए.

सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना : खुदीराम बोस बच्चों पर कोड़ा बरसाने वाले मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट किंग्स फोर्ड से काफी नाराज थे. क्रांतिकारियों के दल ने किंग्स फोर्ड को मारने की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्लचंद्र चाकी को दी थी. उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई.

18 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी को लगाया गले : 30 अप्रैल, 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका लेकिन बम गलत बग्घी पर गिर गया. इस हमले में वकील प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी मारी गईं, इस घटना के बाद उनके साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने तो खुद को गोली मार ली लेकिन खुदीराम पकड़े गए.

फांसी की सजा सुन हंसने लगे थे बोस : बोस ने क्रांतिकारियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया था. वो इतने निडर थे कि जब उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई तो वो हंसने लगे और यह देखकर सजा सुनाने वाले जज कंफ्यूज हो गए. कन्फ्यूज होकर जज ने पूछा कि क्या तुम्हें सजा के बारे में पूरी बात समझ आ गई है. इस पर बोस ने दृढ़ता से जज को ऐसा जवाब दिया जिसे सुनकर जज भी स्तब्ध रह गया. उन्होंने कहा कि न सिर्फ उनको फैसला पूरी तरह समझ में आ गया है, बल्कि समय मिला तो वह जज को बम बनाना भी सिखा देंगे. आजादी के ऐसे मतवालों की वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. खुदीराम बोस को 1908 में 11 अगस्त के दिन फांसी दी गई थी.

मुज़फ्फरपुर केंद्रीय कारागार का नाम.. शहीद खुदीराम बोस : मुज़फ्फरपुर के केंद्रीय कारागार में जिस सेल में इस महान क्रांतिकारी को रखा गया और जेल में जहां उन्हें फांसी की सजा दी गई, वह दोनों स्थल आज भी मुज़फ्फरपुर के केंद्रीय कारागार में संरक्षित हैं. आज मुज़फ्फरपुर केंद्रीय कारागर को शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारागार के नाम से जाना जाता है.

मुजफ्फरपुर.. खुदीराम बोस की कर्मभूमि :मुजफ्फरपुर की धरती से खुदीराम बोस ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था. कर्मभूमि और शहादत भूमि मुजफ्फरपुर में आज भी उनकी स्मृतियां संरक्षित हैं. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संजय पंकज का कहना है कि मुजफ्फरपुर से खुदीराम बोस का गहरा नाता था. 19 साल की उम्र में मौत को गले लगाने वाले खुदीराम बोस की यादें आज भी मुजफ्फरपुर में मौजूद हैं. लेकिन लोगों के लिए उनकी कुर्बानी की कहानी और वो स्थान जहां से उन्होंने क्रांतिकारियों को नई दिशा दी थी आज भी बंद है. ऐसे आम लोगों के लिए इसे खोलने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस महान स्वतंत्रता सेनानी की अमर गाथा से रुबरू हो सकें.

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