मुजफ्फरपुरः जिले में बरसों पुराने पड़ चुके लीची के बागों की तस्वीर अब बदलने वाली है. पुराने बागों के जीर्णोद्धार की दिशा में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की शुरुआत की है. इसके तहत पुराने बागों को नए बागों में तब्दील करने के लिए 'बुनियाद पुरानी, नई कहानी' योजना को लॉन्च किया गया है. जिसमें देसी मुर्गों को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है.
मुर्गी का पालन
दरअसल शाही लीची के लिए पूरी दुनिया में विख्यात मुजफ्फरपुर के लीची बागान की हिफाजत करने का काम इस योजना के तहत अब देसी मुर्गा करेंगे. इसको लेकर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र और बिहार पशु महाविद्यालय के बीच कार्य योजना को लेकर सहमति बन चुकी है. जहां लीची के बागानों में खुले रूप से बाड़ लगाकर वनराज मुर्गी का पालन किया जाएगा. जो लीची के पौधों की कीटों से रक्षा करने में मददगार साबित होंगे.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र अनूठी पहल की शुरुआत
मुजफ्फरपुर की शाही लीची के काफी पुराने हो चुके लीची के बागों को संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी ने इस अनूठी पहल की शुरुआत की है. जिसका नाम दिया गया है 'बुनियाद पुरानी, नई कहानी'.
वैज्ञानिक तरीके बनाया जा रहा उपयोगी
लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने बताया कि पुराने पड़ चुके अनुपयोगी बागों को फिर से वैज्ञानिक तरीके से उपयोगी बनाया जा रहा है. लीची की व्यवसायिक खेती आज उत्तर बिहार के साथ मुजफ्फरपुर की पहचान है. 'बुनियाद पुरानी, नई कहानी' के तहत वैसे वृक्ष जो काफी पुराने हैं उन्हें वैज्ञानिक तरीके से थोड़ी सी छटाई करके नई पद्धति के अनुरूप समयानुसार उनकी जरूरतों को पूरा किया जाता है. जिसके बाद एक नई पेड़ की अपेक्षा इंतजार भी कम करना पड़ता है और फल भी अच्छे आते हैं.
आत्मनिर्भर बनेंगे किसान
डॉ. विशाल नाथ ने बताया कि लीची के संरक्षित बागों को कीटों और कीड़ो से बचाने के लिए देसी वनराज मुर्गों का पालन भी बेहद उपयोगी है. इसलिए केंद्र इन बागों में खुले में जल्द ही मुर्गा पालन भी करने जा रहा है. जिससे किसानों को दोहरा मुनाफा मिलेगा और भारत के किसान आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.