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क्यों ना हो पलायन, ये हैं मजदूरों के लफ्ज- 'कमाते हैं, तब खाते हैं वरना भूखें सो जाते हैं'

बिहार के लिए पलायन तो मानो एक अभिशाप सा बनता जा रहा है. यहां श्रमिक करें भी तो क्या, कागजों में आंकड़े भी कम हैं और काम भी नहीं मिल रहा. पढ़ें ये रिपोर्ट...

मुजफ्फरपुर से नवनीत की रिपोर्ट
मुजफ्फरपुर से नवनीत की रिपोर्ट

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Published : Jul 10, 2020, 8:40 PM IST

मुजफ्फरपुर:कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया. इस दौरान बिहार के लाखों श्रमिक अपने घर वापस आ गये. श्रमिक वापस आये तो सरकार ने उन्हें यहीं रहने और रोजगार देने का ऐलान कर दिया. कई बैठकें हुईं, लेकिन हालात बदलते नहीं दिख रहे हैं. आज घर लौटे मजदूर फिर से पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.

मुजफ्फरपुर में बेरोजगार बैठे मजदूरों की उम्मीद अब टूटने लगी है. ईटीवी भारत से बात करते हुए इन मजदूरों ने अपना दर्द बयां किया. वो कोरोना के साये में पलायन करने को विवश हो रहे हैं. मजदूरों की मानें, तो घर चलाने के लिए अब मुसीबत बढ़ती जा रही है.

मुजफ्फरपुर से नवनीत की रिपोर्ट

1.01 लाख मजदूर वापस लौटे
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे अधिक श्रमिक बिहार लौटे हैं. इनकी संख्या करीब 21 लाख से अधिक है. बिहार के सिर्फ आठ जिलों में ही करीब 10 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक लौटे हैं, जिसमें मुजफ्फरपुर में भी करीब 1.01 लाख के करीब श्रमिक अपने घर लौटे हैं. जिनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिला प्रशासन कई महत्वपूर्ण योजनाओं का हवाला भी दे रहा है.

गरीब कल्याण रोजगार अभियान 2020
प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में प्रशासन जिले में गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की बात तो कह रहा है, लेकिन हकीकत में इसका लाभ अभी तक प्रवासी श्रमिकों में महज दस फीसदी लोग ही लाभ उठा पा रहे हैं. बात अगर मुजफ्फरपुर की करें, तो यहां सबसे अधिक प्रवासी मजदूर मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड में लौटे हैं. लेकिन यहां मजदूरों को रोजगार मिलने की बात धरातल पर नजर नहीं आ रही है. दूसरी ओर जिला प्रशासन लगातार इस दिशा में सतत काम करने की दलील पेश कर रहा है.

प्रवासी मजदूरों की सुनों सरकार

बिहार के 8 प्रमुख जिलों में लौटे प्रवासी श्रमिकों की संख्या

  • मुजफ्फरपुर- 1.01लाख
  • पूर्वी चंपारण- 1.53 लाख
  • कटिहार- 1.42 लाख
  • मधुबनी- 1.25 लाख
  • गया-1.17 लाख
  • पश्चिम चंपारण- 1.17 लाख
  • दरभंगा- 1.03 लाख
  • अररिया- 1.01 लाख

गणेश की मानें तो, 'कमाते हैं, तब खाते हैं. नहीं कमाते हैं तो भूखे ही सो जाते हैं. दस बीस रुपया मिल रहा है. ऐसे में क्या करें.'

वहीं, अविनाश कहते हैं, 'अपने खेतों में काम कर रहे हैं. सरकारी आदमी आए तो थे और बैंक का ब्योरा भी ले गए थे. लेकिन कुछ हुआ नहीं.'

रजिस्ट्रेशन में महज 63 हजार मजदूर
डीएम डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने बताया कि हमारे पास 63 हजार प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन हैं. मॉनिटरिंग कर हुनर के हिसाब से उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाएगा. स्वरोजगार करना चाहते हैं, तो उसके लिए भी पहल की जाएगी.

  • कुल मिलाकर प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी संख्या प्रशासनिक आंकड़ों से भी वंचित है, रोजगार तो दूर की बात. ऐसे में पलायन तो होगा ही.

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