मुजफ्फरपुर: आज पूरा विश्व अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है. हर जगह महिलाओं की बात हो रही है. महिलाओं के सम्मान में बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. वहीं, इन सब के बीच हम आपको मिलवा रहे हैं बिहार कि एक ऐसी महिला से जो पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में कूद कर कामयाबी का परचम लहरा रही है.
कहा जाता है कि कृषि के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है, लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर के आनंदपुर गांव की रहने वाली 63 वर्षीय राजकुमारी देवी ने इस क्षेत्र में ऐसा कमाल कर दिखाया कि लोगों ने इनका नाम ही किसान चाची रख दिया. 'किसान चाची' ने इस क्षेत्र में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया. कृषि की उन्नत तकनीक और मिट्टी की गुणवत्ता की कुशल परख रखने वाली किसान चाची आज सफल खेती का दूसरा नाम बन चुकी हैं.
इस उम्र में भी चलाती हैं साइकिल
अब वह गांव-गांव जाकर महिलाओं कास्वयं सहायता समूह बनाने लगीं हैं. महिलाओं को खेती, खाद्य प्रसंस्करण और मूर्ति बनाने का तरीके सिखाया रही हैं. अब तक किसान चाची 40 स्वयं सहायता समूह का गठन कर चुकी हैं. राजकुमारी देवी आज इस उम्र में भी दिन भर में 30 से 40 किलोमीटर साइकिल चलाती हैं और गांवों में घूम-घूमकर किसानों के बीच मुफ्त में अपने अनुभव को बांटती है.
कैसे रखा कृषि के क्षेत्र में कदम
वह कहती हैं "मैं अक्सर देखती थी कि महिलाएं सिर्फ खेत में मजदूरी करती हैं. उन्हें कृषि का तकनीकी ज्ञान नहीं होता था. वे सिर्फ पुरुषों के बताए अनुसार ही कार्य करती थीं. तब उन्हें ये ख्याल आया कि जब महिलाएं खेत में मेहनत कर सकती हैं तो क्यों ना बेहतरीन कृषि तकनीक सीख कर मेहनत करें. बस यहीं से शुरू हो गया कृषि के क्षेत्र में उनका ये सफर.
सीएम नीतीश कुमार से अवार्ड लेती किसान चाची अभिनेता अमिताभ बच्चन भी हैं फैन
किसान चाची की इस उपलब्धि को लेकर सबसे पहले 2003 में कृषि मेला के दौरान लालू प्रसाद यादव ने पुरस्कृत किया था. बिहार सरकार ने राजकुमारी देवी को वर्ष 2006-07 में 'किसान श्री' से सम्मानित किया. अभिनेता अमिताभ बच्चन भी 'कौन बनेगा करोड़पति' में किसान चाची की लगन और मेहनत के कायल हो चुके हैं. किसान चाची को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सम्मानित कर चुके हैं.
भारत सरकार से मिलेगा पद्मश्री अवार्ड
इतना ही नहीं अब भारत सरकार ने किसान चाची को पद्मश्री अवार्ड दिए जाने की घोषणा की है. ये सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है. आज उनके घरों पर बधाई देने वाले लोगों का तातां लगा हुआ है. अपने पुराने दिनों को याद करके उनके आखों से आंसू छलक आए. जब उन्होंने घर की दहलीज से बाहर कदम रखा था, तो उन्हें और उनके परिवार के लोगों को समाज के बहुत ताने भी सुनने पड़े थे. आज वही पूरे समाज के लोगों को संदेश दे रही हैं. किसानों के बीच क्रांति की अलख जगाने वाली किसान चाची हजारों महिलाओं की रोल मॉडल हैं.
गरीब परिवार में हुई थी शादी
मालूम हो कि मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड की रहने वाली राजकुमारी देवी किसान चाची का जन्म एक शिक्षक के घर में हुआ था. उस समय जल्द ही शादी कर देते थे इसलिए, मैट्रिक पास होते ही 1974 में उनकी शादी एक किसान परिवार में अवधेश कुमार चौधरी से कर दी गई. शादी के बाद वह अपने परिवार के साथ मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव में रहने लगी. राजकुमारी शिक्षिका बनना चाहती थी लेकिन परिजनों के विरोध के कारण वह ऐसा नहीं कर सकी.
साइकिल चालाकर बेचती हैं आचार
पति की बेराजगारी और परिवार की आर्थिक तंगी के कारण किसानी को ही अपना लिया. घर की दहलीज से बाहर कदम रखकर खेती करनी शुरू की. अपने खेत में पपीते उगाए. उन पपीतों से अचार बनाया. उन आचारों को साइकिल से ले जाकर लोगों के बीच में बेचना शुरू किया. समाज के लोग ताने देने लगे. नतीजा यह हुआ कि उनके अपने ही लोग उन्हें तिरस्कृत करने लगे. चाची कहती हैं कि आज स्थिति बदल गई हैं. बेल और आंवले के मुरब्बे जैसे उत्पाद बनाकर महिलाएं बेच रही हैं.
क्या है किसान चाची का कहना
किसान चाची कहती हैं, "आज के दौर में घरेलू उत्पाद की बिक्री को बढ़ावा देने और निर्यात प्रोत्साहन आदि की दिशा में सरकार अवसर प्रदान करे. हर घर में महिलाओं द्वारा निर्मित अचार, मुरब्बा के लिए बाजार उपलब्ध हो." उन्होंने ने ये भी कहा कि आज किसानों की हालत ठिक नहीं है. उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए मैं उचित मंच से अवाज उठाऊंगी.