मुजफ्फरपुर: जब देश के अधिकांश लोग सो रहे थे तब बुधवार तड़के बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित खुदीराम बोस जेल (Khudiram Bose Jail ) में 'एकबार विदाई दे मां, घूरे आसी, हंसी हंसी पोरबो फांसी देखबो भारतबासी' के नारों से गूंज उठा. यह पंक्ति शहीद खुदीराम बोस (Martyr Khudiram Bose) ने तब लिखी थी जब फांसी के पूर्व मुजफ्फरपुर की इसी जेल में उन्हें बंद रखा गया था.
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अमर शहीद खुदीराम बोस की शहादत दिवस के मौके पर मुजफ्फरपुर जेल को पूरी तरह सजाया गया था. जिस स्थान पर बोस को 18 वर्ष की उम्र में फांसी दी गई थी, वहां कई सुगंधित फूलों से सजाया गया और अधिकारियों ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की.
मुजफ्फरपुर का खुदीराम बोस जेल इससे पहले जिस सेल में बोस को गिरफ्तार कर रखा गया था, उसकी साफ सफाई की गई मंगलवार की रात ही उसमें धूप अगरबती जलाई गई. उल्लेखनीय है कि यह सेल वर्षभर बंद रहता है और सिर्फ एक दिन ही खुलता है.
मुजफ्फरपुर जेल में हर वर्ष 11 अगस्त की तड़के सुबह 4 बजकर 2 मिनट से लेकर 5 बजे तक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमे जेल प्रशासन, जिला प्रशासन के अधिकारियों के अलावे खुदीराम बोस के परिजन भी भाग लेते हैं. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण को देखते हुए जारी निर्देश के अनुसार बाहरी किसी भी व्यक्ति की प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी.
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इस साल कार्यक्रम आयोजित हुआ लेकिन कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए सिर्फ जेल प्रशासन के ही अधिकारी और कर्मचारी ही इस कार्यक्रम में शामिल हुए.
सबसे पहले सेल में जहां खुदीराम बोस को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बन्द कर रखा गया था. वहां श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया फिर फांसी स्थल पर जेल के अधिकारियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की गई. इस दौरान उनकी आत्मा की शांति के लिए मौन भी रखा गया एवं फिर जेल के पार्क में बने शहीद खुदीराम बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया तथा सलामी भी दी गयी.
शहीद खुदीराम बोस को दी गई श्रद्धांजलि इस दौरान "एकबार विदाई दे मां, घूरे आसी. हंसी हंसी पोरबो फांसी देखबो भारतबासी" और अमर घोष तथा भारत मां की जयकारों से जेल परिसर गूंज उठा.
"कोरोना के गाइडलाइन के मुताबिक इस साल बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाई गई है, इस कारण किसी को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा गया है. इस मौके पर जेलर सुनील कुमार मौर्य सहित जेल के सभी कर्मचारी मौजूद रहे." - राजीव कुमार सिंह जेल अधीक्षक राजीव कुमार सिंह
30 अप्रैल 1908 की रात करीब साढ़े आठ बजे थे तब खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी किंग्सफोर्ड की बग्घी पर सधे हाथों से बम फेंका. बम का धमाका इतना तीव्र था कि तीन मील इसकी आवाज सुनी गई थी.
शहीद को दी गई श्रद्धांजलि इस धमाके में किंग्सफोर्ड बच गया लेकिन दो महिलाओं की मौत हो गई. इसके बाद दोनों वहां से भाग गए. बाद में ये दोनों समस्तीपुर के पूसा के पास अंग्रेज पुलिस ने दोनों को घेर लिया. प्रफुल्लचंद चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गए थे.
इस विस्फोट के आरोप में 11 अगस्त 1908 को तड़के सुबह 3 बजकर 55 मिनट पर मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई. भारत माता के इस वीर सपूत ने इतनी कम उम्र में ही गीता हाथ में लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था.