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जमीन के अंदर लेटकर आदि शक्ति की उपासना करते हैं गराती बाबा, एक बूंद पानी भी नहीं करते ग्रहण - मां दुर्गा की पूजा

मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के धनौर में गराती बाबा जमीन के अंदर लेटकर मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इस दौरान वह अन्न-जल ग्रहण नहीं करते. वह खुद पर नवरात्र का कलश धारण करते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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गराती बाबा

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Published : Oct 12, 2021, 5:53 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 7:09 PM IST

मुजफ्फरपुर:बिहार के मुजफ्फरपुर में नवरात्रका उल्लास (Navratri Celebration in Muzaffarpur) हर कहीं दिख रहा है. मां दुर्गा के मंदिरों और पूजा पंडालों में भक्तों की भीड़ जुट रही है. मंगलवार को नवरात्रि के सातवें दिन भक्त मां काली की पूजा कर रहे हैं. नवरात्रि के दौरान जिले के पानापुर में स्थित भस्मी देवी (Bhasmi Devi Temple) के दरबार में भक्तों की भीड़ जुट रही है. वहीं, कटरा प्रखंड में जमीन के अंदर लेटकर साधना कर रहे गराती बाबा की भी चर्चा हो रही है.

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मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के धनौर में रहने वाले गराती बाबा अपनी हठ योग की वजह से पूरे इलाके में प्रसिद्ध हैं. नवरात्र में बाबा की आराधना को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. बाबा नवरात्र में बगैर अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं. इस दौरान बाबा जमीन के अंदर दो फीट की गहराई में लेटे रहते हैं. वह अपने ऊपर नवरात्र का कलश धारण करते हैं. साधना के दौरान बाबा बिल्कुल हिल-ढुल भी नहीं पाते हैं.

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गराती बाबा ने कहा, 'मैं तीस साल से पूजा कर रहा हूं. साधना के दौरान पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता. कन्या पूजन के दिन बाहर आता हूं और सबसे पहले गर्म पानी पीता हूं इसके बाद प्रसाद ग्रहण करता हूं. जमीन के अंदर लेटकर साधना करने के चलते लोग मुझे गराती बाबा के नाम से पुकारने लगे हैं.'

वहीं, नवरात्र के दौरान मुजफ्फरपुर के पानापुर के भस्मी देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ जुट रही है. यह मंदिर पौराणिक 52 शक्ति उपपीठों में शामिल है. माना जाता है कि नवरात्र में मां भस्मी के दरबार में आने वाले सभी भक्तों के कष्ट व संताप भस्म हो जाते हैं. यहां भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. गोद भरने पर यहां आंचल पर नाच कराने की प्रथा है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भस्मी देवी अज्ञान रूपी अंधकार में ज्ञान का प्रकाश लाने वाली भगवती हैं. इनके दर्शन व पूजन से यश व कीर्ति मिलती है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में स्थित है, जिसके ठीक सामने एक विशाल हवन कुंड है. इसके भष्म को भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

"माता सती का दाहिना कपोल यहां गिरा था. इसलिए यह मंदिर उप शक्तिपीठ है. यहां पहले हजारों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी और उन्हें भस्म (जलाना) किया जाता था. इसलिए यह स्थान भस्मी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. लोग यहां के भस्म को ले जाते हैं. इसे लगाने से चर्म रोग दूर होता है. अब यहां बलि बंद हो गई है. मन्नत पूरा होने पर लोग कबूतर उड़ाते हैं."- रविशंकर दुबे, मुख्य पुजारी, भस्मी देवी मंदिर, पानापुर

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Last Updated : Oct 12, 2021, 7:09 PM IST

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