मुजफ्फरपुर: पूरी दुनिया में अपनी शाही लीची की मिठास के लिए मुजफ्फरपुर काफी मशहूर है. लेकिन यह लीची पिछले तीन सालों से किसान के लिए आमदनी के बजाय दर्द का सबब बनते जा रही है. कभी चमकी बुखार से जुड़े मामले के लिए बदनामी का दाग, तो कभी कोरोना को लेकर लॉकडाउन की वजह से बाजार नहीं मिलने पर परेशानी. वहीं जलवायु परिवर्तन से लीची में लगे कम फल किसानों की मुश्किल को बढ़ा रहे है.
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व्यापारियों और किसानों हो सकता है घाटा
इस वर्ष व्यापारियों और किसानों को लीची की पैदावार कम होने की संभावना दिख रही है. जिससे लीची उत्पादन करने वाले किसान और पहले से बगीचा खरीदने वाले व्यापारी दोनों को इस बार घाटा नजर आ रहा है. वहीं लीची में फल कम आने की वजह से इस बार बाहर के लीची के बड़े व्यापारी भी बाग खरीदने के लिए शहर नहीं पहुंच रहे हैं.
जलजमाव के कारण लीची में कमी
इस बार भारी बारिश और लंबे समय तक जलजमाव की वजह से लीची में बेहद कमी नजर आ रही है. अधिकांश लीची के बगीचे में मंजर की जगह नए लाल पत्ते आ गए है. लीची बागानों को खरीदने वाले स्थानीय व्यपारियों की माने तो इस बार महज 30 से 40 फीसदी पेड़ों में नजर आए हैं. ऊपर से तेज धूप और उच्च तापमान भी लीची के फसल के लिए बहुत सही नहीं है.
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13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी
व्यापारी और किसान दवाओं के छिड़काव और बगीचों की सिंचाई कर बची-खुची फसल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. गौरतलब है कि जिले में करीब 13 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की बागवानी मौजूद है, जो मुजफ्फरपुर के किसानों की आमदनी में बड़ा योगदान देती है.