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मुजफ्फरपुर: मक्के के बाद अब दलहन की फसल पर कीड़े का हमला, नुकसान से किसानों की बढ़ी चिंता

कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन और ओला, बारिश से किसान पहले से ही परेशान थे. अब किसानों के सामने फॉल आर्मीवर्म कीट ने नई मुसीबत पैदा कर दी है. फिलहाल फॉल आर्मीवर्म भारत के कई राज्यों में पहुंच कर तबाही मचा रहा है.

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Published : Jun 13, 2020, 5:08 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 7:49 PM IST

मुजफ्फरपुर:देश में मक्के की फसल बर्बाद करने वाला फॉल आर्मीवर्म अब दूसरी फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगा है. इस कीट का प्रकोप अब तेजी से बिहार में भी फैलने लगा है. जिले के सरैया और मड़वन प्रखंड के एक दर्जन से अधिक गांवों में इस कीट का प्रकोप देखा जा रहा है.

मूंग की फसल को पूरी तरह नष्ट कर रहा कीट
यह फॉल आर्मीवर्म कीट मूंग की फसल को पूरी तरह नष्ट कर रहा है. इस वजह से इस इलाके के किसान इस मुसीबत से परेशान हैं. सरैया प्रखंड के अम्बर तेज सिंह, रेवाडीह, विशुनपुर, श्रीकृष्णपुर, मड़वा पाकड़, रहमतपुर और चौबे अम्बरा गांव इस कीट से सबसे अधिक प्रभावित है. इन इलाकों में फॉल आर्मीवर्म से मूंग की फसल को सबसे अधिक नुकसान हुआ है.

पत्तियों को पहुंचा नुकसान

फसल चक्र को पहुंच सकता है नुकसान
कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन और ओला, बारिश से किसान पहले से ही परेशान थे. अब किसानों के सामने फॉल आर्मीवर्म कीट ने नई मुसीबत पैदा कर दी है. फिलहाल फॉल आर्मीवर्म भारत के कई राज्यों में पहुंच कर तबाही मचा रहा है. ऐसे में अगर समय रहते इसका नियंत्रण और सही पहचान नहीं हुई तो आने वाले समय में ये देश के फसल चक्र को काफी नुकसान पहुंचा सकता है.

फॉल आर्मीवर्म कीट

लेपिडोप्टेरा प्रजाति का कीट है फॉल आर्मीवर्म
फॉल आर्मीवर्म लेपिडोप्टेरा प्रजाति का एक कीट है. लेपिडोप्टेरा प्रजाती में तितलियां और पतंगे शामिल हैं. फॉल आर्मीवर्म इस कीट के जीनवचक्र का लार्वा रुप है. शब्द 'आर्मीवॉर्म' कीटों की कई प्रजातियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो अक्सर लार्वा चरण में रहकर बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचाता है. इसे 'एफएडब्ल्यू' भी कहा जाता है. 2018 से ही देश में इस विदेशी कीट का असर बढ़ता जा रहा है. हालांकि सरकार की ओर से अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पौधों के लिए खतरनाक है 'एफएडब्ल्यू'
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किसी पौधे पर एक बार फॉल आर्मीवर्म का हमला हो जाए तो इसे बचाया नहीं जा सकता. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पौधे के पूरे जीवनचक्र के दौरान यह एफएडब्ल्यू अपनी कई पीढ़ियों को जन्म दे देता है. यह कीट पौधों के कई हिस्सों पर हमला करता है. लार्वा पत्तियों की सतह को खुरच कर उन्हें पपड़ीनुमा बना देता है.यहां तक कि ये पौधों के अंकुरों को भी खा जाता है, जिसकी वजह से नए पत्तों में भी बड़े-बड़े छेद हो जाते हैं.

पत्तियों को खा लेते हैं फॉल आर्मीवर्म कीट

देश में एफएडब्ल्यू के प्रसार के लिए अनुकूल है परिस्थितियां
एफएडब्ल्यू या फॉल आर्मीवर्म कीट के प्रसार के लिए देश का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियां बिल्कुल अनुकूल हैं. माना जाता है कि तापमान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होने पर एक मादा कीट 1500 तक अंडे दे सकती है. ये कीट लंबी दूरी तक उड़ भी सकते हैं. इस वजह से ये दूर-दूर तक फैल भी सकते हैं.

Last Updated : Jun 13, 2020, 7:49 PM IST

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