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लॉकडाउन का असर: खेतों में ही अपने फूलों को नष्ट कर रहे हैं किसान

मुजफ्फरपुर के साइन गांव में अच्छे पैमाने पर फूलों की खेती होती है. इससे बहुत सारे किसानों और छोटे कारोबारियों की रोजी-रोटी चलती है. लेकिन कोरोना के खौफ में जारी लॉकडाउन ने इनको बेबस कर दिया है. इन दिनों फूल की खेती कर अपने परिवार की आजीविका चला रहे किसान भी कोरोना के प्रभाव से पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं.

कोरोना महामारी का असर
कोरोना महामारी का असर

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Published : Apr 16, 2020, 1:47 PM IST

मुजफ्फरपुर:कोरोना वायरस ने देश के विकास के पहिये पर पूरी तरह से ब्रेक लगा दिया है. ऐसे में कोरोना के प्रभाव से भला खुशियों का प्रतीक फूल का व्यवसाय कैसे बचता? कोरोना महामारी ने फूलों की खेती करने वालों को भी प्रभावित किया है. सब कुछ ठप हो जाने के कारण फूल कारोबारियों की कमर टूट गई है.

लॉकडाउन ने किसानों को किया बेबस
मुजफ्फरपुर के साइन गांव में अच्छे पैमाने पर फूलों की खेती होती है. इससे बहुत सारे किसानों और छोटे कारोबारियों की रोजी-रोटी चलती है. लेकिन कोरोना के खौफ में जारी लॉकडाउन ने इनको बेबस कर दिया है. इन दिनों फूल की खेती कर अपने परिवार की आजीविका चला रहे किसान भी कोरोना के प्रभाव से पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं.

फूल तोड़ते किसान

फूल तोड़कर खेतों में फेंक रहे हैं किसान
लॉक डाउन के कारण तेजी से स्थगित होने वाले शादियों ने किसानों की सारी उम्मीद और मेहनत पर पानी फेर दिया है. खेतों में गेंदे के फूल भले ही खूब खिले हुए दिख रहे हैं, लेकिन ये खिले फूल भी किसानों को मुंह चिढ़ा रहे हैं. दरअसल, लॉकडाउन की वजह से बाजार और मंदिर बंद हैं. ऐसे में फूल की बिक्री बिल्कुल बंद हो गई है. आलम यह है कि मजबूरीवश किसान अपने फूल के पौधे को टूटने से बचाने के लिए खुद ही अपने खेतों में लगे सारे फूल को तोड़कर खेत में ही फेंक रहे हैं.

पेश है पूरी रिपोर्ट

'लॉकडाउन ने किसानों की उम्मीदों पर फेरा पानी'
स्थानीय फूल के किसान ने अपनी हालात पर बताया कि बाजार से कर्ज लिए रुपये और लीज पर लिए जमीन पर हमने बड़ी उम्मीद से इस बार फूलों की खेती की थी. जहां, इस बार फूल के बेहतर बागवानी से उम्मीद बंधी थी, कि इस बार फूलों को बेचकर अपने घर परिवार की जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभायेंगे. वहीं, लॉकडाउन ने तो हमारी सारी उम्मीदों पर पानी ही फेर दिया है.

घुट-घुटकर मरने को मजबूर किसान
शंकर ने आगे कहा कि परिवार के भरण-पोषण की लगातार चिंता खाये जा रही है. ऐसे में इन लाचार परिवारों को आर्थिक सहायता ही इनके उम्मीदों को नया जीवन दे सकती है. अन्यथा शंकर जैसे किसानों के परिवार के लोग न चाहते हुए भी घुट-घुटकर मरने को मजबूर होंगे.

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