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Muzaffarpur Flood: बाढ़ ने तोड़ दी किसानों की कमर, नहीं बची धान लगाने की हिम्मत - crop destroyed from flood

मुजफ्फरपुर जिले में तेज रफ्तार के साथ बाढ़ का पानी निचले इलाकों में प्रवेश कर रहा है. खेत में पानी घुसने से किसानों की फसल नष्ट होने लगी है.

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Published : Jun 26, 2021, 8:13 PM IST

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जिले में बूढ़ी गंडक ने भी रौद्र रूप धारण कर लिया है. नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. उफनाई नदी ने अब शहर के हिस्सों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. यह पानी खेतों में भी पहुंचने लगा है. जिससे किसानों की फसल बर्बाद होने लगी है.

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किसानों की बढ़ी मुसीबत
कुदरत के कहर ने इस बार मुजफ्फरपुर के किसानों की आर्थिक कमर तोड़ दी है. जिससे संभलने की कोशिश कर रहे किसानों की मुसीबत कम होने की बजाय और बढ़ती ही जा रही है. एक बार फिर बाढ़ ने दस्तक देते हुए किसानों की फसल को नष्ट कर दिया है. खेतों में बाढ़ के पानी प्रवेश होता देख किसान अब अपनी बची-खुची फसल को समेटने की जद्दोजहद कर रहे हैं.

बाढ़ के पानी ने फसलों को किया नष्ट
मीनापुर प्रखण्ड (Minapur Block In Muzaffarpur) के निचले इलाके में बूढ़ी गंडक नदी (Burhi Gandak River) के बढ़ते जलस्तर के साथ ही बाढ़ का पानी खेतों में लगी फसल को अब अपनी जद में लेने लगा है. नदी का जल स्तर बढ़ते ही रघई, बहादुरपुर, पहाड़पुर, कलवारी, मधुवन और बनघारा गावों के निचले इलाकों में प्रवेश कर चुका है.

देखें रिपोर्ट.

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फसलों को समटने में जुटे किसान
सैकड़ों एकड़ में लगी सब्जियों, मक्के और मूंग की फसल पानी में डूबने लगी हैं. जिससे किसानों की सारी जमा पूंजी पानी में डूबकर खत्म होने की कागार पर है. इससे परेशान किसान अब अपनी मूंग और सब्जियों की फसल को समेटने की कोशिश कर रहे हैं.

उफान पर नदियां
बता दें बिहार में लगातार हो रही बारिश से नदियां उफान पर हैं. बिहार के कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात हैं. कहीं लोग सड़कों पर आशियाना बना कर रहने को मजबूर हैं तो कहीं गांव को छोड़ सुरक्षित ठिकाने की तलाश कर रहे हैं.

बाढ़ से फसल बर्बाद.

मजबूर हुए लोग
20 साल पहले भी मीनापुर घुसैट कई बार बूढ़ी गंडक नदी के कटाव के जद में आकर बर्बाद और तबाह हो चुका है. नदी के कटाव को देखते हुए गांव के कई परिवार इस गांव से पलायन कर दूसरी जगह बस चुके हैं, जबकि अभी भी आर्थिक रूप से कमजोर परिवार जिनके पास अब दूसरी जमीन नहीं है, वह अभी भी अपनी जान जोखिम में डालकर कटाव के बाद भी नदी के कछार पर बने अपने आशियाने में रहने को मजबूर हैं.

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