मुजफ्फरपुर :बिहार के मुजफ्फरपुर मेंपार्थिव शरीर से फल उठाकर खाने वाले, पैसे चुनने वाले बच्चे भी शिक्षित हो रहे है. उनकी पढ़ाई की व्यवस्था श्मशान घाट के पास ही कर दी गई है. ऐसा करने वाले युवक का नाम सुमित कुमार है. सुमित जिज्ञासा समाज कल्याण के संस्थापक हैं. उन्होंने शहर के सिकन्दरपुर स्थित मुक्तिधाम (श्मशान घाट) के भीतर अप्पन पाठशाला की शुरुआत की है. जिस इलाके के गरीब परिवार के बच्चे कभी लाश पर से फल चुना करते थे. वे आज कॉपी और पेंसिल लेकर ABCD से लेकर क, ख, ग पढ़ रहे हैं.
"सुमित कहते हैं, 2017 में एक परिचित की मौत हो गई थी. शव का दाह संस्कार करने मुक्तिधाम गए थे. उसी समय देखा कि किस तरह बच्चे लाश पर से फल और पैसे चुन रहे हैं. उन बच्चो से बातचीत की तो पता चला की पढ़ने-लिखने और खेलने की उम्र में ये बच्चे पेट भरने के लिए ऐसा कर रहे थे. यहीं से मेरे मन में जिज्ञासा जगी कि क्यों न इन्हें शिक्षित किया जाए."- सुमित कुमार, संस्थापक, जिज्ञासा समाज कल्याण
परिवार के पास नहीं थे उतने पैसे की स्कूल भेजे: सुमित ने बताया कि उन्होंने इलाके का भ्रमण किया. वहां के रहने वाले लोगों से मुलाकात की. तब पता चला कि इलाके के गरीब बच्चों के मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेज सके. इसके बाद उन्होंने इलाके के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया.
बच्चों को श्मशान में दी जा रही तालिम मुक्तिधाम के पुजारी ने दिया साथ: सुमित बताते हैं कि मुक्तिधाम में एक महाकाल का मंदिर है. वह यहां के पुजारी सोखी लाल मंडल से मिले. उनसे बातचीत की. उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने की बात बताई. इसपर वे काफी खुश हुए. उन्होंने इलाके के लोगों को बुलाया. फिर उन्हें सुमित की सोच से अवगत कराया. लोग भी तैयार हो गए. इसके बाद एक-एक कर 46 बच्चे जमा हो गए और इन्हें मुफ्त शिक्षा मिलने लगी.
पिछले 6 सालों से चला रहे अप्पन पाठशाला: सुमित बताते हैं कि वे पिछले 6 सालों से अप्पन पाठशाला चला रहे हैं. अब तक कई बच्चों को साक्षर ,शिक्षित और संस्कारित किया गया है. अभी नियमित 125 से अधिक बच्चे पढ़ने आते हैं. छात्रों को संध्या 4:00 से 7:00 बजे तक पढ़ाया जाता है. यह बच्चे कक्षा 0 से लेकर कक्षा 9 तक के हैं.
स्कूल में कराया गया दाखिला: सुमित बताते हैं कि शुरू के दिनों में धीरे-धीरे बच्चों को बैठने और पढ़ने की आदत लगाई गई. फिर उनका नामांकन इलाके के सरकारी प्राथमिक, मध्य और उच्च विद्यालयों में कराया गया. अब वह बच्चे पढ़ते हैं. संस्कारित हो रहे हैं. एक तरफ जहां पूरी जिंदगी की लीला समाप्त होती है. वहीं जलती चिताओं के सामने नए-नए सपनों का जन्म होता है. यहां के बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, तो किसी को कलेक्टर बनना है.
मुक्तिधाम में शिक्षा लेते बच्चे कार्य का समाज पर प्रभाव:बताया गया कि ये बच्चे अगर पढ़ लिख कर शिक्षित और संस्कारित हो जाते हैं तो यह कभी न चोरी करेंगे, ना किसी का सामान छीनेंगे, ना गलत संगति करेंगे. शिक्षित होने पर बच्चों का शोषण भी कोई नहीं कर सकता है. इन्हें देख लोग प्रेरित हो रहे हैं.
संस्कार के लिए संस्कृत पढ़ाना किया शुरू:सुमित बताते है की पाठशाला में विशेष रूप संस्कृत पढ़ाई जा रही है. ताकि, यहां के पढ़ने वाले गरीब बच्चे अपने संस्कृति के साथ ही संस्कार को बढ़ाये. संस्कृत पढ़ाने के लिए उन्होंने आचार्य अखिलेश शास्त्री को बुलाया. वे बच्चों को परंपरागत भाषा और संस्कृति से जुड़ी संस्कृत को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है. बच्चों में भी इसको लेकर ललक पैदा हो रही है. अब तो महज चार दिन में ही बच्चे संस्कृत में बात भी करने लगे है. ये बच्चे अब तो संस्कृत में बोलने-लिखने और पढ़ने भी लग गए हैं और अपना परिचय भी संस्कृत में देते हैं.
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