बिहार

bihar

ETV Bharat / state

गरीबी और गुमनामी में जी रहा अमर शहीद जुब्बा सहनी का परिवार, मजदूरी कर पाल रहा पेट - Indian freedom struggle

आज अमर शहीद जुब्बा सहनी का शहादत दिवस है. आज ही के दिन सन 1944 में भागलपुर के केन्द्रीय कारावास में उन्हें फांसी दे दी गई थी. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलने के दौरान अंग्रेज अधिकारी को जिंदा आग के हवाले कर दिया था.

मुजफ्फरपुर
मुजफ्फरपुर

By

Published : Mar 11, 2021, 11:12 AM IST

Updated : Mar 11, 2021, 8:23 PM IST

मुजफ्फरपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'. यह लिखते वक्त जगदानंद प्रसाद हितैषी को शायद यह अंदाजा नहीं था कि जिनके हाथों में देश और राज्य सत्ता की बागडोगर जाएगी. वे इन शहीदों के शहादत के मेले को सिर्फ सियासी तौर पर भजाने का काम करेंगे. न तो ये नेता उनके परिवार की देखभाल का जिम्मा उठाएंगे, न ही वे उस भूमि के उत्थान में कोई योगदान देंगे. जिसने वतन पर मर मिटने वाले 'शेर' को पैदा किया.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का परिवार मीनापुर प्रखण्ड के चैनपुर में गुरबत की जिंदगी जीने को मजबूर है. हर साल सूबे के तमाम बड़े नेता और राजनीतिक दल उनके शहादत दिवस 11 मार्च को उनको किसी न किसी रूप में याद कर अपनी सियासत को चमकाने की कोशिश करते हैं. लेकिन उनके परिवार का हाल जानने की कोशिश आज तक किसी नेता ने नहीं की है.

यह भी पढ़ें: लीची के पेड़ों से मंजर गायब, कम उत्पादन की आशंका ने बढ़ाई चिंता

जुब्बा साहनी के परिवार के पर छत भी नहीं
अंग्रेजों की गुलामी से वतन को आजाद का ख्वाब देखने वाले जुब्बा साहनी भले ही निस्वार्थ भाव से फांसी के फंदे पर झूले हों. लेकिन उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके जाने के बाद जिनके हाथों में देश की बागडोर होगी, वे बस आजादी के परवानों के नामों पर अपनी सियासत चमकाएंगे.

मुफलिसी में जी रहा परिवार

अमर शहीद जुब्बा साहनी की आज शहादत दिवस हैं. चुनावी अभियानों में जिले में जुब्बा साहनी को तो सभी याद करते हैं, लेकिन उनके परिवार की सुध आजतक किसी राजनेता ने नहीं ली है. जुब्बा साहनी के परिवार की हालत यह है कि उनके पास अपना सिर ढकने के लिए एक अदद छत भी नहीं है.

शहीद जुब्बा साहनी मंच

जिस भूमि ने जना शेर, विकास की रफ्तार में छूट गई पीछे
आज जुब्बा साहनी के परिजन और उनके गांव वाले खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं. शहीद के परिजनों को आज भी इस बात का मलाल है कि उनके नाम पर नेता सिर्फ वोट बटोरने की कवायद करते हैं. नेता न तो उनके परिजनों के हाल की परवाह है न ही साहनी के जन्मभूमि की दशा में कोई बीते कई दशक से बदलाव आया है.

शहीद के परिवार को पक्का छत तक नसीब नहीं

11मार्च 1944 को दी गई थी फांसी
गौरतलब है कि 11 मार्च को जुब्बा साहनी का शहादत दिवस मनाया जाता है. इसी दिन जुब्बा साहनी को फांसी दी गई थी. इस दिन पूरा देश उन्हें नमन करता है. जुब्बा साहनी का नाम बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार है. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था. बाद में पकड़े जाने पर उन्हें 11 मार्च 1944 को उन्हें भागलपुर के केन्द्रीय कारगर फांसी दे दी गई थी.

Last Updated : Mar 11, 2021, 8:23 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details