मुंगेर: कोरोना का टीका का इंतजार लोग बेसब्री से कर रहे थे. लेकिन जब आया तो लोग उसे लगवाने में बेरुखी दिखा रहे हैं. लगातार लक्ष्य से पिछड़ने के बाद स्वास्थ्य प्रशासन ने कठोर निर्णय लिया है. जिले में दूसरी बार भी स्वास्थ्य कर्मी ने टीका नहीं लगाया तो वंचित हो जाएंगे. कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मी ही कोरोना का टीका लेने से अब डर रहे हैं. 16 जनवरी से शुरू हुए टीकाकरणअभियान के पहले सत्र का पहला सप्ताह समाप्त हो चुका है. अब दूसरे सप्ताह का आरंभ हो चुका है. लेकिन जो पहले सप्ताह का डाटा है, वह काफी निराश करने वाला है.
वैक्सीनेशन के लिए चयनित फ्रंटलाइन कर्मी
जिले के 6 सेंटरों पर रोजाना 600 लोगों को टीका दिए जाने का लक्ष्य था. लेकिन कुल 2400 लोगों के टीकाकरण के लक्ष्य के मुकाबले 4 दिनों के सत्र में मात्र 972 कोरोना वारियर्स को ही टीका लगा है. टीकाकरण के पहले चरण के अंतिम दिन तो, 600 के विरुद्ध मात्र 130 कोरोना वारियर्सही टीका लगवाने केंद्र पर पहुंचे. जो कुल आंकड़े का महज 22% है. तारापुर और खड़कपुर जांच केंद्र पर मात्र 10-10 प्रतिशत ही चिह्नित फ्रंटलाइन कर्मी वैक्सीन का टीका लगाने पहुंचे थे. जबकि अन्य चार केंद्रों पर भी यह आंकड़ा 40% से ऊपर नहीं पहुंच पाया. हालांकि इसका मुख्य कारण वैक्सीनेशन के लिए चयनित फ्रंटलाइन कर्मियों का वैक्सीन की उपयोगिता और इसके साइड इफेक्ट को लेकर संशय माना जा सकता है.
समाहरणालय में हुई बैठक
आंकड़े की मानें तो पहले चरण के लिए कुल 6691 स्वास्थ्य कर्मियों का चयन टीकाकरण के लिए किया गया था. जिसके लिए जिले में 6 केंद्र बनाए गए हैं. टीकाकरण के पहले दिन 600 लोगों के विरुद्ध मात्र 291 अर्थात 48.5%, दूसरे दिन 231 अर्थात 38.5%, तीसरे दिन 320 अर्थात 53%, चौथे दिन 320 अर्थात 53%, 130 लोगों ने टीकाकरण करवाया, जो काफी कम है. टीकाकरण लक्ष्य के अनुरूप सफलता नहीं मिलने पर जिला प्रशासन काफी गंभीर है. सदर अस्पताल में सीएस डॉ. अजय कुमार भारती की अध्यक्षता में दो बैठक आयोजित की गई. जिसमें सभी पीएचसी प्रभारी मौजूद थे. साथ ही डीएम रचना पाटिल की अध्यक्षता में समाहरणालय में भी शनिवार को बैठक का आयोजन किया गया.
शिविर लगाने पर सहमति
बैठक के दौरान फ्रंटलाइन वर्करों को जागरूक करने और जो लगातार दूसरी बार भी टीका नहीं लगाएंगे, उन्हें टीकाकरण से वंचित करने पर निर्णय लिया गया. लगातार टीकाकरण लक्ष्य के अनुरूप पिछड़ने के बाद जिला प्रशासन ने स्वास्थ्य विभाग के साथ बैठक कर प्रतिशत को बढ़ाने का चर्चा किया. इसमें आंगनबाड़ी केंद्रों के स्वास्थ्य कर्मियों को जागरूक करने के लिए शिविर लगाने पर सहमति बनी.