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आजादी के 7 दशक बाद भी इस गांव में नहीं पहुंची विकास की लौ, सांसद ने भी कभी नहीं पूछा हाल - munger

आजादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस गांव में बिजली, पानी, अस्पताल, शिक्षा और सड़क जैसी आवश्यकताओं का घोर अभाव है. गांव में रहने वाले ग्रामीण आज भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं

नक्सल प्रभावित क्षेत्र भीम बांध गांव

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Published : Apr 10, 2019, 12:54 PM IST

मुंगेरः नक्सल प्रभावित क्षेत्र कहलाने वाला खड़गपुर अनुमंडल स्थित सोनारवा और भीम बांध गांव विकास की राह से कोसों दूर है. इस गांव में नक्सलियों के डर से प्रत्याशी और चुनाव प्रचारक भी नहीं आते. शहरी क्षेत्र से तकरीबन साठ किलोमीटर दूर होने के कारण यहां के ग्रामीण मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं. जमुई लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले इस गांव के ग्रामीण अपने वर्तमान सांसद चिराग पासवान तक को नहीं पहचानते.

मुंगेर जिले से लगभग 60 किलोमीटर दूर भीम बांध इलाका, चारों ओर से फैले पहाड़ों की गोद में बसा है. आजादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस गांव में बिजली, पानी, अस्पताल, शिक्षा और सड़क जैसी आवश्यकताओं का घोर अभाव है. गांव में रहने वाले ग्रामीण आज भी कई मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं. गंगटा पंचायत में पड़ने वाले भीम बांध और सोनरवा गांव में लगभग 1000 मतदाता हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बसने के कारण ग्रामीणों को किसी प्रकार की सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है.

सिर्फ चुनाव के समय आते हैं नेता
यहां के ज्यादातर ग्रामीणों को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है. खड़गपुर जमुई मुख्य मार्ग से लगभग 11 किलोमीटर अंदर कच्ची सड़कों के सहारे ग्रामीण पैदल या अपनी निजी सवारी से गांव आते जाते हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि चुनाव के समय प्रत्याशी गांव आकर पहले आश्वासन की घुट्टी पिलाते हैं और चुनाव के बाद दोबारा वापस गांव नहीं आते. अगर सरकार के द्वारा किसी प्रकार की कोई योजना गांव के विकास हेतु आती भी है तो वह उधर ही समाप्त हो जाती है.

जानकारी देते स्थानीय लोग

5 साल में कभी नहीं आए चिराग पासवान
ग्रामीणों ने बताया कि जमुई के वर्तमान सांसद चिराग पासवान भी इन 5 साल के कार्यकाल में नक्सलियों के डर से कभी गांव नहीं आए. इस गांव के सरपंच भरत ठाकुर ने बताया कि सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ हम ग्रामीणों को नहीं मिलता है. ग्रामीणों की सबसे बड़ी समस्या पानी की है. भीम बांध स्थित गर्म जल कुंड का गर्म पानी इन ग्रामीणों को मिलता है. जिसे छानकर और ठंडा कर ये लोग पीने को मजबूर हैं. वहीं समुचित पानी नहीं मिलने से ग्रामीण खेती से भी वंचित हैं.

पैदल ही तय करते हैं रास्ता
इस गांव में अगर कोई बीमार पड़े तो ग्रामीणों को गांव से मुख्य मार्ग आने में 11 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है. उसके बाद मुख्य सड़क मार्ग से शहर आने के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. वहीं नक्सलियों के डर से प्रसव से पीड़ित महिलाओं को अस्पताल ले जाने के लिए भी एंबुलेंस तक गांव में नहीं आता है.

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