मधुबनी: 'सामा ऐली कार्तिक महिनमा, संग में चकेबा लय के ना... भैया ऐला पहुना, सामा-चकेबा सनेस लेला ना... एलै कार्तिक के बहार सामा करियौ ने तैयार...' मिथिलांचल की बेटियां सामा-चकेवा (Sama Chakeva in Mithilanchal) पर सुर में सुर लगाकर गीत गा गाती हैं और सामा चकेबा संग खूब मस्ती करती हैं. सात दिनों के इस पर्व की शुरुआत देवोत्थान एकादशी (Devothan Ekadashi) से शुरू होकर समापन गंगा स्नान यानि कार्तिक पूर्णिमा (Karthik Purnima) के दिन होता है. सामा चकेबा पर्व में बहनें भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं.
सात दिनों तक चलता है यह त्योहार : ग्रामीण महिलाए बताती है कि सामा चकेबा त्योहार (folk festival of mithilanchal sama chakeva) में महिलाएं आठ दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं. इस त्योहार में महिलाएं और युवतियां पारंपरिक मैथिली लोकगीत गाती हैं. इन गीतों में सामा और चकेवा के रूप में भाई-बहन के प्रेम का वर्णन होता है. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है. विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिस्तर और दूसरी जरूरी चीजें दी जाती हैं. महिलाएं विदाई के गीत गाती हैं, जिसे समदाओन कहते हैं.
घुटनों से तोड़ा जाता है सामा चकेबा : ग्राणीन बताती है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा चकेवा की पूजा होती है. भाई को चूड़ा-गुड़ और लड्डू दिया जाता है. इसके बाद बहन सामा और चकेबा को पीला वस्त्र पहनाती है. चूड़ा-दही और गुड़ खिलाकर विदाई करती है. इसके बाद भाई अपने घुटने से सामा चकेवा की मूर्ति को तोड़ता है. और फिर बहन और भाई मिलकर सामा चकेवा को जमीन के अंदर दबा देते हैं.