लखीसराय:बिहार में भीषण गर्मी का प्रकोप इंसानों के साथ-साथ नदियों पर कहर ढ़ाह रहा है. लोगों को राहत देने वाली जिले की किऊल नदी पूरी तरहे से सूख गई है. गर्मी की तपिश से किऊल नदी रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है. वहीं, तापमान बढ़ने से जल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. जिससे लोगों को पानी के लिए तरसना पड़ रहा है.
इस भीषण गर्मी में तापमान 45 से 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है. जिससे पूरी किऊल नदी सूख चुकी है. इसके साथ-साथ अनेकों पोखर, तलाब और नहरों की हालत भी वैसी ही है. नदियों के सूखने से आसपास के क्षेत्रों में भूजल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है. जिसके कारण खेती योग्य भूमि बंजर होती जा रही है. पशु-पक्षियों को भी पानी के लिए तरसना पड़ रहा है.
पानी के लिए मचा हाहाकार
शहर के जाने माने साहित्यकार और कलाकार ओमप्रकाश स्नेही ने बताया कि किऊल नदी लखीसराय के लिए कभी वरदान था. जब से किऊल नदी में बालू उत्खनन शुरू हुआ है तब से लगातार गर्मी के दिनों में नदी सूख रही है. भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. पानी के लिए घरों में हाहाकार मचा हुआ है. उन्होंने कहा कि बचपन में इस नदी में वे नहाया करते थे. लेकिन, इस नदी के सूखने से ऐसा लग रहा है कि कहीं इसका अस्तित्व खत्म न हो जाए.
नदी पर भूमाफियों का कब्जा
शहर के युवा व्यवसायी विजय भाई ने बताया कि किऊल नदी सूखने से लखीसराय का भूजल स्तर नीचे गिर गया है. जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है. नदी सूख ही नहीं रही है बल्कि उसे भूमाफियाों ने नदियों की भूमि पर कब्जा भी कर लिया है. उन्होंने कहा कि नदी के किनारे बड़ी तादाद मे अवैध घर बने हैं. जिससे नदी का क्षेत्रफल भी सिकुड़ने लगा है. सरकार को किऊल मे जल संरक्षण के लिए सामने आना आना चाहिए.
जिला प्रशासन बेसुध
किऊल नदी सूखने से भयंकर जल संकट उत्पन्न होने लगा है. लेकिन, जिला प्रशासन सहित तमाम लोग अपनी आंखें मूंद बैठा है. सरकार की जल ही जीवन है और पानी बचाओ योजनाएं सब विफल साबित हो रही है. बता दें कि नदियों की रक्षा एवं पर्यावरण के नाम पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपए सरकार खर्च करती है. लेकिन, इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है.
काम के कारण कर्मचारियों की छुट्टी रद्द
पीएचईडी विभाग के कार्यपालक पदाधिकारी श्री हरेराम ने बताया कि लखीसराय जिले के किऊल नदी सबसे बड़ा जलस्रोत का साधन था, जो अब पूरी तरह सूख चुका है. भीषण गर्मी को देखते हुए लोक स्वास्थ्य विभाग ने सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है. जिले में पीने की समस्या को दूर करने के लिए जिला नियंत्रण कक्ष की स्थापना की गई. जिसमें संबंधित सहायक अभियंता, कनीय अभियंता के दूरभाष पर जनता के लिए पेयजल की व्यवस्था करेगा. लखीसराय का औसत भू-जल स्तर 36'4"आंकी गई हैं. यहां पेयजल संकट से निजात पाने के लिए आपदा के अन्तर्गत 120 नये चपाकलों का लगाया गया है.
जिले में हैं इतने चापाकल
आपको बता दें कि लखीसराय जिले में कुल 4646 चपाकल है. जिसमें 3739 चापाकल चालू अवस्था में है. 494 चापाकल खराब पड़े हैं जो मरम्मत योग्य नहीं हैं. वहीं, साधारण मरम्मत के लिए बंद पड़े 413 चापाकलों की मरम्मत कर चालू कर दी गई है.