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किशनगंज का 'किंग' कौन: कांग्रेस लगाएगी जीत की हैट्रिक या JDU साधेगा निशाने पर 'तीर'?

मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र किशनगंज में इस बार पुराने चेहरे नहीं दिखेंगे. पिछली बार चुनाव जीतने वाले असरारुल हक के निधने के कारण कांग्रेस ने मो. जावेद को उम्मीदवार बनाया है, जबकि जेडीयू ने महमूद अशरफ पर दांव खेला है. इसके अलावे ओवैसी की पार्टी भी यहां पूरा दमखम दिखा रही है.

लोकसभा चुनाव

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Published : Apr 16, 2019, 7:15 PM IST

किशनगंज: दिसंबर 2018 में सांसद मौलाना असरार-उल-हक़ क़ासमी के निधन से यहां का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया है. इस बार महागठबंधन के साथ-साथ एनडीए ने भी नए चेहरे पर दांव खेला है. कांग्रेस ने जहां मो. जावेद को प्रत्याशी बनाया है, वहीं, जेडीयू ने महमूद अशरफ को अपना कैंडिटेट बनाया है. जबकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से अख्तरूल इमान मैदान में हैं. हालांकि पिछली बार की तुलना में परिस्थिति बदल गई हैं. जेडीयू 2014 में एनडीए का हिस्सा नहीं था, लेकिन इस बार दोनों साथ हैं.

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2014 चुनाव का जनादेश
2014 में हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार असरार-उल-हक़ क़ासमी को 4,93,461 वोट मिले थे. उन्होंने बीजेपी के डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल को हराया था. जायसवाल को 2,98,849 वोट मिले. वहीं जेडीयू के अख्तरुल इमान को महज 55,822 वोट मिले थे.

विधानसभा सीटों का समीकरण
किशनगंज लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं. बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी. 2015 के विधानसभा चुनाव में 3 कांग्रेस, 2 जेडीयू और एक सीट आरजेडी ने जीती थी.

इस सीट का समीकरण
किशनगंज लोकसभा सीट पर वोटरों की संख्या 11,86,369 हैं. इसमें से महिला वोटर 5,61,940 हैं, जबकि इस सीट पर पुरुष वोटरों की संख्या 6,24,429 है.

सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी
सीमाचंल की सामाजिक बनावट में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी है. मुसलमानों की एक जाति सूरजापुरी है, यह जाति सीमांचल में पायी जाती है. इस लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले सभी छह विधायक सूरजापुरी मुसलमान ही हैं. पसमांदा की भी काफी आबादी है. पिछड़ों में यादव की आबादी सबसे ज्यादा है. वहीं, अतिपिछड़ों की आबादी काफी है, जबकि सवर्ण जातियों की आबादी कम है.

जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश
67 फीसदी मुस्लिम बहुल वाले किशनगंज सीट से 2009 और 2014 में लगातार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस अबकी बार जहां हैट्रिक पूरा करना चाहेगी, वहीं, नीतीश के आसरे एनडीए महागठबंधन से सीट झटकने की हरसंभव कोशिश करेगा. चूकि दोनों प्रमुख खेमे के प्रत्याशी मुस्लिम ही हैं, ऐसे में ये तो तय है कि इस बार यहां का रण आसान नहीं होगा. देखना ये भी अहम होगा कि अख्तरूल इमान मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में कितना सफल हो पाते हैं.

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