किशनगंज:कोरोना महामारी से बचाव के लिए चल रहे लॉकडाउन ने समाज के निचले तबके की आर्थिक हालत बिगाड़कर रख दी है. तालाबंदी के कारण मल्लिक समाज के लोगों के आय का स्त्रोत छिन गया है. शादियां नहीं होने के कारण इस्तेमाल होने वाले बांस से बने सामानों की बिक्री बिल्कुल बंद है. जिससे मल्लिक समाज अपनी रोजी-रोटी के लिये परेशान है.
महादलित कहलाने वाले मल्लिक जाति के लोगों की पूरे जिले में स्थिति दयनीय बनी हुई है. रोजगार के नाम पर ये लोग आज भी अपने परंपरागत धंधे पर जीवन निर्वहन करने को मजबूर हैं. अधिकांश लोग रोजी-रोटी के लिये बांस की टोकरी और अन्य सामानों को बनाते हैं. इसके अलावा सूअर पालन भी इनके आय का स्रोत है. किशनगंज शहर के बीचों-बीच बसे मल्लिक जाति के लोगों को देखकर इनके आर्थिक-सामाजिक विकास का पैमाना देखा जा सकता है.
लॉकडाउन के कारण बढ़ी परेशानी
लॉकडाउन ने मल्लिक समाज के लोगों की चिंता बढ़ा दी है. मई-जून के महीने में होने वाली हिंदू शादियों में इन लोगों की काफी उपयोगिता होती है. हिंदू शादियों में इस्तेमाल होने वाले डाली, दौरा और सूप जैसे सामानों को ये समाज ही बनाता है. बांस के बने लगभग सभी सामान इनके द्वारा बनाये जाते हैं.
कमजोर हुई आर्थिक स्थिति
लॉकडाउन के कारण शादियां नहीं हुईं और इनके बनाये सामान भी ज्यों के त्यों रखे रह गये. इसके अलावा गर्मी में इनके बनाए हुए पंखों की बिक्री भी होती थी, लेकिन टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से इसकी बिक्री भी पहले से ही कम थी. लॉकडाउन के बाद हाथ वाले पंखों की बिक्री बिल्कुल बंद हो गई. पहले से ही कमजोर आर्थिक स्थिति वाले मल्लिक समाज के लोगों की कोरोना काल में कमर टूट गई है.
बांस के सामान बनाते मल्लिक समुदाय के लोग सरकार से नहीं मिल रही मदद
ईटीवी भारत से बात करते हुए इन लोगों ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी हम बांस के सामान बना रहे थे. हमें उम्मीद थी कि शादियों में इनकी काफी मांग होगी. इसके लिए हमने बड़े पैमाने पर बांस खरीद लिए थे. इन सामानों को बनाना भी शुरू कर दिया था लेकिन जब शादी का मौसम शुरू होने वाला ही था, तबतक देश में लॉकडाउन शुरु हो गया. इससे हमारा सारा काम चौपट हो गया. दुख की बात ये है कि भुखमरी की स्थिति के बावजूद सरकार हमारे बारे में नहीं सोच रही है. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही. इस कारण हम लोग ज्यादा परेशान हैं.