किशनगंजःअसम और दार्जिलिंग की चाय का नाम तो आपने खूब सुना होगा. लेकिन आज हम आपको बिहार के किशनगंज की चाय के बारे में बताने जा रहे हैं. पारंपरिक खेती के लिए मशहूर सीमांचल के किसान पिछले एक दशक से जूट के बजाय चाय की खेती कर रहे हैं.
यहां पर तकरीबन 25 हजार एकड़ भूमि पर चाय के बागान हैं. इस क्षेत्र में सालाना लगभग 60 मिलियन किलो चाय का उत्पादन होता है. किशनगंज के पोठिया, ठाकुरगंज, बहादुरगंज और दिघलबैंक इलाके में बड़े पैमाने पर चाय की खेती होती है.
बिहार के सिर्फ 3 ब्लॉक में होती है चाय की खेती
किशनगंज में सीटीसी चाय का उत्पादन होता है. बड़ी संख्या में छोटे किसान चाय उत्पादक हैं. किशनगंज जिले में कुल 7 ब्लॉक हैं, इनमें से सिर्फ 3 ब्लॉक यानी कि पोठिया, ठाकुरगंज, व किशनगंज में ही चाय की खेती होती है. यानी पूरे बिहार में सिर्फ यही 3 ब्लॉक हैं जहां चाय की खेती होती है.
चाय की खेती से दूर हुई बेरोजगारी
किशनगंज के चाय पत्ती बागान के मालिक का कहना है कि किशनगंज में चाय की खेती से बेरोजगारों को रोजगार मिला है. मजदूरों का पलायन भी रुका है. वातावरण में नमी आई. बारिश होने लगी और यहां की मिट्टी में भी बदलाव साफ दिख रहे हैं. चाय की खेती के प्रति किशनगंज के लोगों के साथ-साथ बाहरी लोगों का भी रुझान बढ़ता गया. किशनगंज की जलवायु खास तौर पर चाय की खेती के लिए काफी सही मानी जाती है. किशनगंज में 30 एकड़ में चाय की खेती से हजारों मजदूरों को रोजगार मिल रहा है.
'बंगाल में बेचनी पड़ेती है चाय की पत्ती'
एक चाय किसान का कहना है कि किशनगंज में चाय की खेती इतने बड़े पैमाने पर होती है कि यहां की टी प्रोसेसिंग कंपनियां पत्तियों की खपत नहीं कर पाती. लिहाजा किसानों को औने पौने दामों में अपनी पत्ती बंगाल में बेचनी पड़ती है. उन्होंने कहा कि अगर किशनगंज में ही और कंपनी खोली दी जाए तो किसानों को अपनी चाय बंगाल में नहीं बेचनी पड़ेगी.