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किशनगंज में क्रिसमस की धूम, यीशु के स्वागत में रोशनी में नहाया चर्च - क्रिसमस ट्री का इतिहास

क्रिसमस पर एक खास तरह के वृक्ष को सजाया जाता है. जिसे क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाता है. क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत दुनिया में सबसे पहले जर्मनी से हुई थी. क्रिसमस ट्री समृद्धि का प्रतीक है.

Kishanganj
किशनगंज में क्रिसमस की धूम

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Published : Dec 24, 2019, 9:39 PM IST

किशनगंज: जिले के बाजारों में क्रिसमस की धूम देखने को मिल रही है. क्रिसमस को लेकर शहर और आसपास के गिरिजाघरों को आकर्षक ढंग से सजाया-संवारा गया है. क्रिसमस डे को बड़ा दिन भी बोलते हैं. इस दिन प्रभु यीशु का जन्म हुआ था. क्रिसमस डे 25 दिसंबर को मनाया जाता है. क्रिसमस के दिन एक दूसरे को उपहार देना, चर्च में समारोह और सजावट करना शामिल हैं. इस सजावट के प्रदर्शन में क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी लाइटें, भगवान यीशु के जन्म की झांकी आदि शामिल है.

क्रिसमस के लिए सजाए गए चर्च

क्रिसमस ट्री का इतिहास
क्रिसमस पर एक खास तरह के वृक्ष को सजाया जाता है. जिसे क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाता है. क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत दुनिया में सबसे पहले जर्मनी से हुई थी. क्रिसमस ट्री समृद्धि का प्रतीक है. जिन घरों में यह ट्री स्थापित होता है. उस घर में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है. जिसका प्रभाव घर के सभी सदस्यों पर पड़ता है. क्रिसमस ट्री को सदाबहार डगलस, बालसम या फर भी कहा जाता है. इसे क्रिसमस के मौके पर खूब सजाया जाता है. इसमें गिफ्ट, घंटियां, खिलौने जैसी चीजों को बांधा जाता है.

किशनगंज में क्रिसमस की धूम

यीशु मसीह के जन्म से जुड़ा है क्रिसमस ट्री
क्रिसमस ट्री को लेकर माना जाता है कि जब ईसा मसीह का जन्म हुआ. तब सभी देवताओं ने यीशु मसीह के माता-पिता को बधाई दी. देवताओं ने उनके जन्मदिन की खुशी में सदाबहार के पेड़ को सितारों और चमकीली चीजों से सजाया था. तभी से क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा चली आ रही है. क्रिसमस डे पर घरों में सजाने वाला क्रिसमस ट्री इसी का प्रतीक है. इसे सजाने और लोकप्रिय बनाने का श्रेय बोनिफस टुयो को जाता है. जो एक धर्म प्रचारक थे.

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