खगड़िया: अलौली प्रखंड के अंतर्गत सुदूर ग्रामीण इलाके में स्थित शहरबन्नी गांव चुनाव के समय चर्चा में है. कई दशकों से केंद्र में मंत्री रामविलास पासवान का यह पैतृक गांव है. दलित परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के शिखर तक पहुंचने वाले रामविलास पासवान का आलीशान घर इस गांव में स्थित है. लेकिन इस गांव के दलित परिवारों की स्थिति अभी भी वैसी ही बनी हुई है, जिससे संघर्ष कर रामविलास पासवान आज मंत्री पद की सुविधा भोग रहे हैं.
रामविलास पासवान का पैतृक गांव
स्थानीय ग्रामीण एक तरफ रामविलास पासवान के बंगले को निहारते हैं. दूसरी तरफ अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी को और शायद मन ही मन यही सोचते हैं कि उनके अच्छे दिन कब आएंगे. खगड़िया जिला को लोग फरकिया जिला भी कहते हैं. फरकिया इसलिए कहा जाता है कि 7 नदियों के महाजाल के कारण भौगोलिक स्थिति इस जिले की काफी विषम है. खास कर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का पैतृक गांव कोसी बागमती नदी पार सुदूर ग्रामीण इलाके में स्थित है.
अलौली से बने थे विधायक
शहरबन्नी गांव की सीमा पड़ोसी जिले समस्तीपुर, दरभंगा और सहरसा तीनों से मिलती है. रामविलास पासवान ने इसी ग्रामीण परिवेश और दलित बस्ती में जन्म लेकर अपने संघर्ष से अपना मुकाम हासिल किया. चाहे छात्र जीवन के राजनीति की बात हो या पहली बार विधायक बनने की. उसकी शुरुआत उन्होंने अलौली से ही की.
संघर्ष की लड़ाई की शुरुआत
पहली बार जब रामविलास पासवान अलौली से विधायक बने, उसके बाद उन्होंने लगातार नई उपलब्धियां अर्जित की. दशकों से वह विभिन्न सरकारों में मंत्री बने हुए हैं. लेकिन उस गांव को भूल गए, जिस गांव से उन्होंने दलितों के संघर्ष की लड़ाई की शुरुआत की थी. भले ही सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने पैतृक गांव में अपने और परिजनों के लिए बंगले बनवाया. लेकिन वह शायद उन दलितों को मुंह चिढ़ा रहे हैं जो अब भी टूटी झोपड़ी में अपना गुजर-बसर कर रहे हैं.