खगड़िया:गोगरी में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार आज के समय में पूरी तरह से बंद हो चुका है. 1960-65 में शुरू हुए इस रोजगार ने खगड़िया को एक अलग पहचान दी थी. लेकिन सरकार और बिजली विभाग की लापरवाही की सजा यहां के स्थानीय लोगों को मिली. आलम यह है कि आज इस पेशे से जुड़े लोग बेरोजगार हो गए और रोजी-रोटी के जुगाड़ में दूसरे व्यवसाय या मजदूरी के लिए दूसरे शहरों का रुख कर लिया है.
खगड़िया: बंद हो रहा दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार, सैकड़ों लोग हुए बेरोजगार - सरकारी योजना के लाभ में आंखें बिछा कर बैठे हैं
मुस्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर में ही सूत और खादी के कपड़ों की बुनाई की जाती थी. पास में खादी ग्राम उद्योग कारखाने की मदद से बने हुए कपड़ों को बेचा जाता था. ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ों की बुनाई किया करते थे.
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बेरोजगार हो चुके हैं कारीगर
आज भी यहां के छोटे कारीगर किसी सरकारी योजना के लाभ में आंखें बिछा कर बैठे हैं कि सरकार की कोई नई शुरुआत हो और इस तरह के छोटे-मोटे कारखानों को फिर से एक नई पहचान मिल सके. खगड़िया के गोगरी में पूरा गांव ही एक समय में सूत और कपड़ा बुनाई का काम किया करता था. मुस्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर में ही सूत और खादी के कपड़ों की बुनाई की जाती थी. पास में खादी ग्राम उद्योग कारखाने की मदद से बने हुए कपड़ों को बेचा जाता था. ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ों की बुनाई किया करते थे. लेकिन आज के समय में दोनों तरह के कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं. जिसकी मुख्य वजह बिजली और रॉ मेटीरियल की महंगाई है.
'बुनाई का काम हो गया ठप'
स्थानीय कारीगर कहते हैं कि एक दिन में खादी का 20 से 25 पीस गमछा और लुंगी तैयार करके बाजार में बेचते थे. लेकिन जिस तरह से इस गांव को बिजली नसीब ही नहीं हुई, मानो यहां विकास कभी पहुंचा ही नहीं, इसलिए धीरे-धीरे पहले एक दो बंद हुए फिर पूरी तरह से बुनाई का काम ठप हो गया. सभी लोग नए रोजगार की तलाश में लग गए. वहीं, जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार भी मानते हैं कि बिजली और राॅ मेटीरियल की महंगाई के वजह से सभी बेरोजगार हुए हैं.