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खगड़ियाः बाढ़ ने बढ़ाई मुश्किलें, मक्के की रोटी और नमक खाकर पेट भरने को लोग मजबूर

खगड़िया प्रखंड के उत्तरी पंचायत के 6 गांव कोसी और बागमती के पानी से डूब चुके हैं. सैकड़ों परिवार घर से बेघर हो चुके हैं. बाढ़ की विपदा झेल रहे उत्तर माराड पंचायत के कई गांवों के बीच ईटीवी भारत की टीम पहुंची और वहां के लोगों का हाल जाना.

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Published : Aug 16, 2020, 12:02 PM IST

खगड़ियाःजिले में नदियों के जलस्तर में लगातार वृद्धि होने की वजह से बाढ़ को लेकर परेशानी बनी हुई है. कोसी, कमला व करेह के जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर आते ही कई पंचायत व कई गावों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है. जैसे-जैसे नदियों के पानी में वृद्धि हो रही है. वैसे-वैसे रोज नए गांव व पंचायत बाढ़ के चपेट में आ रहे हैं. बाढ़ का पानी घरों में घुसने के कारण विस्थापन का भी दौर जारी है.

बाढ़ का कहर

बाढ़ का कहर
जिले में अबतक 7 प्रखंड की 39 पंचायत प्रभावित हो चुकी है. बाढ़ प्रभावित हो चुकी 39 पंचायतों के 116 गांव पानी से घिर चुके हैं. मुख्यालय से गांव का सम्पर्क भंग हो चुका है. इन जगह पर घरों में प्रवेश के साथ लोग लगातार विस्थापित हो रहे हैं. बाढ़ से अब तक सैकड़ों की संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं.

मचान पर बैठी महिला और बच्चे

सैकड़ों परिवार बेघर
खगड़िया प्रखंड के उत्तरी पंचायत के 6 गांव कोसी व बागमती के पानी से डूब चुके है. सैकड़ों परिवार घर से बेघर हो चुके हैं. बाढ़ की विपदा झेल रहे उत्तर माराड पंचायत के कई गांवों के बीच ईटीवी भारत की टीम पहुंची और वहां के लोगों का हाल जाना.

देखें पूरी रिपोर्ट

लोग खाने-पीने को मोहताज
बाढ़ से घिरे इन लोगों की हजार समस्याएं है. यहां के निवासी एक-एक समय के लिए खाने-पीने के मोहताज है. पशुओं के लिए चारा नहीं है. बाढ़ के पानी से तरह-तरह के जहरीले जानवर आ रहे हैं और लोग बीमार पड़ रहे हैं, तो डॉक्टर के पास भी नहीं पहुंच पा रहे हैं.

20 घर नदी में विलीन
इन सब समस्याओं के बीच जो सबसे बड़ी समस्या है, वो ये है कि गांव को कोसी, कमला व करेह का संगम हर दिन काट रहा है. अब तक 20 घर नदी में विलीन हो चुके हैं. किसी रात ये भी अनहोनी हो सकती है कि पूरा गांव ही नदी के कटाव के चपेट में आ जाए. लेकिन प्रशासन की तरफ से अब तक यहां कोई कार्य शुरू नहीं किया गया है.

पानी में खड़े लोग

मक्के की रोटी और नमक से गुजर-बसर
उत्तर माराड पंचायत के लोगों को अब तक ना ही नाव उपलब्ध कराया गया है, ना ही कोई राहत शिविर की शुरुआत की गई है. लोगों के पास ऊपरवाले का नाम जपने के अलावे कोई और विकल्प नहीं है. पशुओं के लिए जो सूखा चारा जुटा कर ये रखे थे, वो भी अब खत्म हो चुका है. राशन दुकान बंद होने की कगार पर है. सिर्फ मक्का ही सहारा बचा है. मक्के की रोटी और नमक खाकर लोग गुजर बसर कर रहे हैं.

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