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कृष्ण-सुदामा की तरह रामविलास पासवान और राम लखन की दोस्ती बनी मिसाल - खगड़िया के कृष्ण सुदामा

दोस्ती का सही मतलब समझने के लिए कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को उदाहरण के तौर पर लोग बताते हैं. लेकिन ठीक ऐसी ही दोस्ती देखने को मिली खगड़िया के शहरबन्नी गांव में. लोगों के बीच रामविलास पासवान और राम लखन साह की जोड़ी कृष्ण और सुदामा की जोड़ी से कम नहीं मानी जाती थी. भले ही रामविलास पासवान अब नहीं रहे लेकिन उनके मित्र आज भी उनकी अनमोल दोस्ती को याद करते हैं, और बताते हैं कि कैसे रामविलास पासवान ने कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ा.

childhood friend of ram vilas
childhood friend of ram vilas

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Published : Jan 1, 2021, 4:00 PM IST

खगड़िया(शहरबन्नी गांव): ईटीवी भारत आज आपको खगड़िया के शहरबन्नी गांव लेकर चल रहा है. जहां की कच्ची सड़कों पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिवंगत रामविलास पासवान का बचपना बीता था. गांव की पगडंडियों पर वे अपने बचपन के दोस्त राम लखन साह के साथ खेलते थे. साथ में स्कूल जाते थे. इतना ही नहीं राजनीतिक जीवन के शुरूआती दौर में साह ने रामविलास पासवान को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. इन दोनों की दोस्ती सबके लिए मिसाल बनी हुई है. रामविलास पासवान अपने तथाकथित इस सुदामा मित्र को इतना चाहते थे कि जब वह दिल्ली गए थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री से अपने मित्र को मिलवाने पहुंच गए थे.

राम लखन साह, रामविलास पासवान के बचपन के दोस्त
'एक साथ रहते थे, एक साथ खेलते थे, सारी बात होती थी. उनके जीतने के बाद हम दिल्ली गये. एक साथी की तरह रामविलास ने व्यवहार किया. उनके यहां हम एक महीना रुके, उन्होंने घर-परिवार की तरह रखा. विश्वनाथ सिंह से मिलवाये. पासवान जी के नाम पर एक महाविद्यालय होना चाहिए और एक स्वास्थ्य उपकेंद्र तो जरूर होना चाहिए.'- राम लखन साह, रामविलास पासवान के मित्र
रामविलास पासवान का पैतृक गांव

2020 में दोस्त का साथ छूट गया
वर्ष 2020 खगड़िया समेत देशवासियों के लिए काफी दुखदायी रहा. खगड़िया को साल 2020 ने एक ऐसा जख्म दिया जो काफी गहरा है. देश की राजनीति में शीर्ष पर दशकों से चमकने वाले रामविलास पासवान के निधन से उनके पैतृक गांव शहरबन्नी से लेकर सम्पूर्ण जिले के लोग मर्माहत हैं. रामविलास पासवान के निधन से उनके दोस्त रामलखन साह को झकझोर कर रख दिया.

देखें पूरी रिपोर्ट

कौन हैं राम लखन साह
रामविलास और राम लखन दोनों बचपन के साथी थे. दोनों की पढ़ाई गांव के स्कूल में साथ साथ हुई. और रामविलास पासवान के राजनीति में प्रवेश करने का व्यूह रचना भी उनके सुदामा जैसे मित्र राम लखन साह ने ही रचा था. पहली बार जब रामविलास पासवान अलौली सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो उनका मुकाबला तत्कालीन सत्ताधारी दल के कांग्रेस प्रत्याशी से था. ऐसे में मुश्किल दिख रही जीत को राम लखन साह ने युवाओं की टीम बनाकर आसान कर दिया था. राम लखन साह और रामविलास पासवान के अन्य साथी सहयोगियों के ताबड़तोड़ मेहनत के बल पर रामविलास पासवान पहली बार अलौली से विधायक चुने गए. जिसके साथ ही उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हो गई.

'दोस्ती में कभी नहीं आया कोई बदलाव'
कई बार राजनीतिक कैरियर में रामविलास पासवान को उतार-चढ़ाव भी झेलना पड़ा. लेकिन हर बार राम लखन साह उन्हें हिम्मत देते रहे. यही वजह रही कि जब हाजीपुर से चार लाख से ज्यादा मतों से रामविलास पासवान जीतकर सांसद बने और पूरे देश में उनका डंका बजने लगा. तब भी रामविलास पासवान और राम लखन साह कि दोस्ती में कोई बदलाव नहीं आया.

राम और लखन की जोड़ी रही हमेशा साथ
रामविलास पासवान जब भी खगड़िया या अपने पैतृक गांव आते थे राम लखन साह, साये की तरह उनके साथ होते थे. इतना ही नहीं रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री थे तो राम लखन साह किसी काम से दिल्ली गए. रामविलास पासवान ने अपने इस मित्र का भरपूर स्वागत किया और महीनों अपने साथ रखा. साथ ही अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के यहां बारी-बारी से ले गए. और एक खास मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ सिंह के आवास पर भी राम लखन साह को ले गए. और उस दौरान रामविलास पासवान ने कहा कि- 'महाभारत में जिस तरीके से कृष्ण और सुदामा की दोस्ती हुआ करती थी मेरा और राम लखन साह की दोस्ती भी उससे कम नहीं है, यह मेरा सुदामा है.'

दोस्त को याद कर लखन हुये भावुक
रामविलास पासवान के साथ अंत समय तक बिताए गए पूर्व के पलों को याद कर राम लखन भावुक हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि हमारी दोस्ती ताउम्र साथ रही भगवान ने भले ही उन्हें हमसे अलग कर दिया है लेकिन अभी भी दिल में उनके लिए वैसा ही प्रेम है. एक साथ खेले- कूदे, पढ़े-लिखे दोनों दोस्तों में से एक ने राजनीतिक जगत में अपनी एक अलग पहचान बना ली. लेकिन गांव में निवास करने वाले दोस्त के लिए नजरिया कभी नहीं बदला. वाकई इस तरह की दोस्ती लोगों के बीच चर्चा का विषय बनना तो तय है.

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