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बाढ़ की मारः चारा के लिए 25 किमी सफर करती हैं महिलाएं, रेलवे बना सहारा

पशुपालक बेजुबान जानवरों के लिए 25 किमी दूर जाकर चारा का जुगाड़ कर रहे हैं. रोजाना महिलाएं सुबह 9 बजे निकलती है और शाम के 5 बजे अपने घर वापस लौटती है. वहीं महिलाओं ने आरोप लगाया कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.

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Published : Nov 6, 2019, 11:39 PM IST

चारा का जुगाड़

कटिहारः जिले में आई भीषण बाढ़ ने पशुपालकों के सामने चारा की समस्या खड़ी कर दी है. हालात ऐसे हैं कि जिले के लोगों को चारा दूसरे इलाके से लाना पड़ता है. दूसरी तरफ रेलवे का सहारा लेना पड़ रहा है. गौर करने वाली बात यह है कि चारा लाने के लिए लोग घास की गठरी लेकर रेलवे डिब्बे में कई किलोमीटर तक सफर करते हैं.

बता दें कि कटिहार के मनिहारी रेलवे स्टेशन पर इस तरह का नजारा रोजाना देखने को मिलता है. जहां, ट्रेन पर हरे घास का गट्ठर लादे जाते हैं. दरअसल लोग कटिहार के बाढ़ ग्रस्त इलाके में एक इलाके से दूसरे इलाकों में मवेशियों के लिए ले हरे घास ले जाते हैं. बताया जाता है कि बाढ़ का पानी आज भी निचली इलाकों में भरा है. जिसके कारण मवेशियों को खिलाने के लिए चारा की समस्या सामने खड़ी है.

ट्रेन का इंतजार करती महिलाएं

रोजाना 25 किलोमीटर सफर करती हैं महिलाएं
जिले के दूसरे इलाकों से रोजाना इसी तरह लोग ट्रेन में घास के गट्ठर को रखकर दूसरी जगह ले जाते हैं. ग्रामीण महिलाओं ने ईटीवी भारत को बताया कि जानवरों के लिए चारा का इंतजाम करना पड़ता है. इसके लिए ट्रेन से जाना मजबूरी है. क्योंकि आवागमन में इससे सहुलियत मिलती है और यह सस्ता भी है. बिना किसी रोकटोक के ट्रेन में घास लादकर 25 किलोमीटर दूर मनिहारी जाते हैं.

बाढ़ पीड़ित महिला

चारा के लिए जद्दोजहद कर रही महिलाएं
वहीं दूसरी महिला ने बताया कि पूर्णिया के रानीपतरा थाना क्षेत्र समेत जिले के दूसरे क्षेत्रों से हरे घास का जुगाड़ करना पड़ रहा है. रोजाना 25 किलोमीटर दूर मनिहारी के बाघमारा गांव पहुंचती हैं. बता दें कि ये महिलाएं पशु के चारे के लिए सुबह 9 बजे निकलती है और शाम 5 बजे अपने घर वापस लौटती हैं. वहीं महिलाओं ने आरोप लगाया कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

मजबूरी में रेलवे बना सहारा
रेलवे के नियमों के मुताबिक किसी भी सवारी डिब्बों में बगैर बुक कराए कोई भी व्यक्ति 70 किलो से अधिक सामान नहीं ले जा सकते. नियमानुसार इसका भाड़ा देना पड़ता है. लेकिन बाढ़ पीड़ित अपने पशुओं के चारे के लिए रेलवे से सफर कर घास ढोने पर मजबूर हैं.

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