कटिहार:कोरोना वायरस के खौफ ने पूरी दुनिया को दहलीज के अंदर कैद कर दिया है. बाजारों में सन्नाटा और सड़कें सुनसान पड़ी हुई हैं. हर जगह वीरान रास्तों पर बड़े-बड़े काले बैगों को सिर और पीठ पर ढोते लोग बड़े आसानी से आपको दिख जायेंगे. लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों का बुरा हाल है. ऐसी विकट परिस्थिति में भूख-प्यास से व्याकुल प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं. लॉकडाउन का दंश झेल रहे मजदूरों का कहना है कि अब कभी वो परदेस नहीं जायेंगे.
लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों का दर्द: 'गरीबी की गठरी' सिर पर लिए नंगे पैर नाप रहे हैं सड़क
कटिहार की सड़कों पर चिलचिलाती धूप में नंगे पांव सड़क नापते सिर पर गठरी लिये प्रवासी मजदूर लगातार चलते जा रहे हैं. मजदूरों के साथ बेबस और लाचार मासूम बच्चे भी लड़खड़ाते कदमों से जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं.
जिले की सड़कों पर चिलचिलाती धूप में नंगे पांव सड़क नापते सिर पर गठरी लिये प्रवासी मजदूर लगातार चलते जा रहे हैं. मजदूरों के साथ बेबस और लाचार मासूम बच्चे भी लड़खड़ाते कदमों से जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं. मजदूरों के अनुसार पैसों और देश की मौजूदा परिस्थिति के अनुसार प्रवासी मजदूर बच्चे, महिला और बुजुर्ग सभी मालवाहक वाहनों में जानवरों की तरह ठूंस कर जैसे-तैसे अपने घरों का रूख कर रहे हैं.
'अब नहीं जाऊंगा परदेस'
कोरोना महामारी से बेखौफ प्रवासी मजदूर कांति देवी बताती हैं कि वो लखनऊ से कटिहार पहुंची हैं. आगे भी घर तक पैदल ही जाना है. मासूम रोहित ने बताया कि वह नोएडा से पैदल चला आ रहा है. वहीं, इस संकट में फंसे प्रवासी मजदूर बुधना ने कहा कि साहेब, अब कभी परदेस कमाने नहीं जाऊंगा. घर पर ही जो रोजी-रोजगार मिलेगा उसी से काम चला लूंगा.