कटिहार: जिले के मनिहारी अनुमंडल स्थित गोगा झील पक्षी अभ्यारण्य अपनी सुंदरता के कारण प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हर वर्ष जाड़े के मौसम में विदेशी पक्षी यहां प्रवास के लिए पहुंचती है. लेकिन वर्तमान में यह झील सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. जिस कारण यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही हैं.
बदहाली पर आंसू बहा रहा कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य 1976 में पक्षी अभ्यारण्य बनाने की हुई थी घोषणा
गोगाबिल पक्षी अभ्यारण्य का काफी हिस्सा जिले के अमदाबाद प्रखंड क्षेत्र में पड़ता है. यह झील 215 एकड़ में फैला हुआ है. इसमें 75 एकड़ सरकारी जमीन है तथा 140 एकड़ रैयती भूमि है. यह झील एक ओर गंगा तो दूसरी ओर महानंदा से घिरी है. जिस कारण इस झील का प्राकृतिक तापमान प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. झील में 90 से अधिक प्रजाति के पक्षियों की आवाजाही दर्ज की गयी है. जिनमें मुख्य रुप से साइबेरियन पक्षी के अलावा 30 प्रवासी पक्षी हैं. इसमें चार पक्षी विलुप्त श्रेणी में आते हैं, जिनमें गरुड़ प्रजाति के पक्षी भी शामिल हैं. वहीं, सरकार ने इस झील के महत्व को देखते हुए साल 1976 में प्रवासी पक्षी अभ्यारण्य बनाने की घोषणा की थी. लेकिन वर्तमान में यहां पक्षी अभ्यारण्य के नाम पर उखड़ा हुआ माइल स्टोन इसकी कहानी बयां कर रहा है.
कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य पर्यटक होते है सरकारी ठगी का शिकार
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि किताबों में इस झील की गाथा पढ़कर पर्यटक घूमने आते हैं. लेकिन उनको यहां झील के बजाय परिसर में फैली गंदगी देखने को मिलती है. सैलानियों को कुछ दीदार नहीं होता. गोगाबिल झील के नाम पर दर्जनों सैलानी सरकारी ठगी का शिकार हो जाते हैं और वे निराश होकर लौट जाते हैं. स्थानीय निवासी नजीबुर हक और राम कुमार कुंवर बताते हैं कि 2 महीने पहले लगभग 250 विदेशी सैलानियों का एक दल यहां पहुंचा था, लेकिन झील की दयनीय हालत देखकर वे बैरंग वापस लौट गए.
विकास को लेकर सरकार प्रतिबद्ध- सांसद
वहीं, इस मामले पर जिले के सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी का कहना है कि बिहार सरकार इस झील के विकास को लेकर प्रतिबद्ध है. झील के विकास के लिए सूबे का पहला स्वशासी कमेटी भी बनाई गई है. कमेटी झील के विकास को नया मुकाम देगी. उन्होंने कहा कि झील के विकास के लिए बिहार के पर्यटन मंत्री से बात किया जाएगा और लोकसभा के पटल इस मुद्दे पर आवाज बुलंद किया जाएगा.
सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी गौरतलब है की इस झील की नींव 1976 में बिहार सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री उमा पांडे ने रखी थी और उस वक्त सरकार ने संकल्प जताया था कि झील से जहां एक ओर पक्षी अभ्यारण्य बनेगा. वहीं इलाके में विकास की बयार बहेगी. लेकिन 43 साल गुजरने के बाद भी यह मनोरम झील को पक्षी विहार के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है और आज यह यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही है.