कटिहार: जिले के 87 वर्षीय संगीतकार दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा ने 5 साल की उम्र में अपनी दोनों आंख की रौशनी खो दी. लेकिन गायकी और संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी ऐसी पहचान बनाई कि लाखों लोग इनके दीवाने हो गए. साथ ही, इनकी ओर से सिखाए गए संगीत से आज उनके बच्चे पूरे देश में अपना नाम रौशन कर रहे हैं.
5 साल की उम्र में खोई आख की रौशनी
8 भाई-बहनों में सबसे बड़े दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा का जन्म 1933 में कटिहार में हुआ था. उनके पिताजी कटिहार जूट मिल में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उनका बचपन आर्थिक तंगी में गुजरा. वहीं, 5 साल की उम्र में चिकन पॉक्स होने की वजह से उनकी दोनों आंखों की रौशनी चली गई. जिसके बाद इसे अपनी लाचारी न समझ, संगीत से अपने नए जीवन की शुरुआत की. जहां अपनी गायकी का लोहा मनवाते हुए इन्होंने लोगों को जिंदगी में संगीत के जरिए रौशनी फैला दी.
'तानसेन' के नाम से महशूर हैं दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा अंग्रेज गुरु ने दी संगीत की तालीम
दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा बताते हैं कि युवावस्था के दौरान उनकी मुलाकात एक अंग्रेज से हुई. जिसका नाम जॉर्ज था. जॉर्ज ने ही इन्हें संगीत के पहले अक्षर 'सा रे ग म प' का ज्ञान दिया. जिसके बाद इन्होंने जॉर्ज से संगीत के बारे में बहुत कुछ जाना. वे जॉर्ज को अपना संगीत गुरु मानते हैं. वे कहते हैं कि उनकी संगीत में रुचि जॉर्ज की ही देन है. वहीं, आज दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा को लोग जिले में तानसेन के नाम से बुलाते हैं.
इनके छात्र लहरा रहे देश में परचम
गायकी और संगीत में अपना कैरियर बनाने के बाद दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा ने बच्चों को संगीत सिखाना शुरू किया. उनकी ओर से सिखाए गए संगीत से उनके छात्र आज पूरे देश में उनका नाम रौशन कर रहे हैं. छात्र आनंद कुमार बताते हैं कि उनकी संगीत उनके गुरु जी की देन है. ऐसे में वे लोग पूरे भारत में उनके नाम का परचम लहरा रहे हैं. वे लोग देश के विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालयों में अपनी संगीत और गायिका का प्रदर्शन कर पुरस्कार जीत रहे हैं.
अपने शिष्य के साथ दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा अन्तोदय योजना का नहीं मिलता लाभ
बता दें कि 87 वर्षीय दुर्गा प्रसाद विश्वकर्मा को सरकार की ओर से पेंशन योजना का लाभ मिलता है. कुछ साल पहले तक उन्हें अन्तोदय योजना के तहत 30 किलो चावल और गेहूं भी मिलते थे. लेकिन सरकार ने अब इसे देना बंद कर दिया है.