कटिहार:जिले में चिमनी और ईंट भट्ठा संचालक प्रकृति की दोहरी मार झेलने को विवश हैं. इन दिनों कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रदेश भर में लॉकडाउन लागू है. जिसकी वजह से सामान्यतया सभी प्रकार के व्यवसाय प्रभावित हुए हैं. वहीं ईंट भट्ठा व्यवसाय पर कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है. इलाके में आए बाढ़ का पानी चिमनियों और ईंट भट्ठों में फैल गया हैं. जिससे काम-काज पूरी तरह से ठप हो गया है. बाढ़ का पानी फैलने की वजह से ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के सामने रोटी के लाले पड़ गए हैं.
चिमनियों में घुसा बाढ़ का पानी
कटिहार के मनिहारी इलाके में महानंदा नदी ने कोहराम मचा रखा है. बाढ़ का पानी फैलने से निचले इलाकों के खेत-खलिहानों की खेती बर्बाद हो गई है. जुट और धान की फसल को व्यापक पैमाने पर क्षति पहुंची है. साथ ही सैलाब के पानी की इंट्री इलाके के चिमनियों और ईंट भट्ठों में जमा हो गया है. चिमनियों और ईंट भट्ठों में चार से पांच फीट पानी फैलने की वजह से ईंटों का उत्पादन बिल्कुल ही ठप हो गया है.
काम-काज पूरी तरह ठप
स्थानीय ईंट भट्ठा संचालक रमेश कुमार पासवान ने बताया कि इस साल उन लोगों पर कुदरत की दोहरी मार पड़ी है. बीते बाइस मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद जब देश भर में कोरोना वायरस से बचाव और इसके संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लागू किया गया, तभी से चिमनियों और ईंट भट्ठों में उत्पादन बंद है. इस बात को गुजरे छह महीने बीत गए हैं. वहीं अब हम लोग भट्ठे चालू करने की सोच ही रहे थे कि बाढ़ का पानी चिमनियों में घुस आया है. जिससे काम-काज पूरी तरह बंद हो गया है.
मजदूरों के सामने भूखे मरने की नौबत
रमेश पासवान ने बताया कि उत्पादन नहीं होने की वजह से मजदूरों को भी पैसा देना संभव नहीं हो पा रहा है. लाखों का सर पर कर्ज हो गया है. साथ ही व्यापार भी घाटे में चल रहा है. अब दिक्कत यह है कि यदि लॉकडाउन हटता भी है तो चिमनियों में पानी रहने की वजह से काम काज ठप रहेगा और यह पानी सूखने में तीन से चार माह का समय गुजर जाएगा. जिससे यह पूरा साल ही बेकार निकल गया. ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि ईंट भट्ठा चलता था तब हमारा गुजर-बसर आसानी से हो जाता था. वहीं लॉकडाउन के बाद अब बाढ़ का पानी भट्ठों में घुसने की वजह से चिमनी संचालकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. जिससे अब हमारे भूखे मरने की नौबत आ गई है.
ईंट भट्ठा संचालकों की सरकार से गुहार
अब बाढ़ प्रभावित चिमनियों और ईंट भट्ठा संचालकों कीं निगाहें सरकार पर टिकी हैं. कुदरत के मारे ईंट भट्ठा संचालकों और मजदूरों ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि प्रशासन द्वारा थोड़ी आर्थिक मदद हो जाती तो किसी प्रकार हमारा गुजर-बसर हो जाता.