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Shardiya Navratri 2023: बिहार के इस मंदिर में दी जाती है 'अनूठी रक्तविहीन पशु बलि'.. देखिए माता मुडेश्वरी की महिमा - Shardiya Navratri 2023

कैमूर के मुण्डेश्वरी मंदिर (Mundeshwari temple in Kaimur) में बिना रक्तपात के बलि देने की प्रथा अनूठी है. बताया जाता है कि पूरे भारत में कहीं भी ऐसी अहिंसक पशु बलि नहीं दी जाती है. इसके अलावा यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है. दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां पूजा करने आने वाले श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है. पढ़ें पूरी खबर..

मुंडेश्वरी मंदिर
मुंडेश्वरी मंदिर

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 18, 2023, 6:10 AM IST

मुंडेश्वरी मंदिर में रक्तविहीन पशु बलि

कैमूर :बिहार के कैमूर में जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भगवनपुर के पवरा पहाड़ी पर साढ़े 6 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित मां मुंडेश्वरी और महामंडलेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है. श्रद्धालुओं के अनुसार मां मुडेश्वरी की महिमा अपरंपार है. यहां की सबसे बड़ी खासियत यहां की बलि प्रथा है. यहां पर रक्तविहीन पशु बलि दी जाती है. यह एक अनूठी प्रक्रिया होती है. इस खास विधि से बलि देने यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

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अनूठी है रक्तविहीन पशु बलि : रक्तविहीन पशु बलि देखने और मां के दर्शन व पूजन के लिए यहां देश- विदेश से लोग पहुंचते हैं. माता मुंडेश्वरी के दर्शन के लिए दुर्गा पूजा के अवसर पर मनोकामना मांगने वाले और बलि देने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. मौके पर जिला प्रशासन की ओर से यहां सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस बल एवं मजिस्ट्रेट की भी तैनाती की है, ताकि दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को कोई तरह की दिक्कत ना हो सके.

"मंदिर परिसर में मां मुंडेश्वरी को रक्त विहीन बलि दी जाती है, जो एक अनूठी प्रक्रिया है. पशु को मां के प्रतिमा के समक्ष लाया जाता है. मंदिर के पुजारी के जरिए मंत्रोच्चार के बाद पशु पर अक्षत, फूल आदि चढ़ाया जाता है फिर वो पशु मूर्छित हो जाता है और पुनः मंत्रोच्चारण के बाद अक्षत, फूल पशु पर मारने के बाद वह खड़ा हो जाता है".-मुन्ना द्विवेदी, प्रधान पुजारी

प्राचीनतम मंदिरों में एक है मां मुंडेश्वरी मंदिर : इस मंदिर को भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है. हालांकि, ये कितना प्राचीन है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. जानकारी के अनुसार इतना प्रमाण अवश्य मिल रहा है कि इस मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है, बल्कि ये मंदिर खुदाई में मिली है. मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि यहां मिले शिलालेख से पता चलता है कि 526 ईसा पूर्व में मंदिर पाया गया, जहां तेल और अनाज का प्रबंध एक स्थानीय राजा की और से संवत्सर के तीसवें वर्ष के कार्तिक (मास) में 22वें दिन किया गया था.

"यह मंदिर 535 ई.पू. का बताया जाता है. यह बहुत ही प्राचीन और 51 आदिशक्तिपीठों में एक माता शक्ति का स्थान है. मान्यता के अनुसार माता ने इसी स्थान पर मुंड नामक राक्षस का संहार किया था. यहां विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. अभी यहां बेल्जियम से एक महिला श्रद्धालु पहुंची थी."- गोपाल कृष्ण, लेखापाल, मां मुंडेश्वरी मंदिर

मंदिर में मौजूद शिलालेख से इसके इतिहास का चलता है पता : ऐसे में शिलालेख पर मंदिर में मिले उसके वर्णन के अनुसार शिलालेख पर जो राजाज्ञा उत्कीर्ण है, उससे भी पहले मंदिर का निर्माण किया गया होगा . इससे ये पता चलता है. वर्तमान में यह मंदिर मां मुण्डेश्वरी के रूप में स्थित है. यहां पंचमुखी महामंडलेश्वर महादेव का शिव लिंग भी स्थिति है. मंदिर की प्राचीनता और माता के प्रति बढ़ती आस्था को देख राज्य सरकार की ओर से भक्तों की सुविधा लिए यहां पर विश्रामालय, रज्जुमार्ग आदि का निर्माण कराया जा रहा है.

ऐसे पहुंचे मां मुडेश्वरी के धाम : सरकार की ओर से पहाड़ पर स्थित मंदिर में जाने के लिए एक सड़क का निर्माण कराया गया है, जिस पर छोटे वाहन सीधे मंदिर के द्वार तक जा सकते हैं. मंदिर तक जाने के लिए 560 सीढ़ियों का रास्ता भी बनाया गया है. वहीं, बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन पटना से आते हैं जो पहाड़ी के नीचे बसा गांव रामगढ़ तक जाती हैं. यहां रेल से पहुंचने के लिए पटना, गया या मुगलसराय से भभुआ रोड स्टेशन उतरना पड़ता है.

"यहां अहिंसक पशु बलि देखने को मिलता है. यहां पशु का रक्त नहीं बहाया जाता है. मनोकामना पूर्ण होने पर लोग इस तरह की बलि देने आते हैं. इस तरह की बलि प्रथा कहीं और देखने को नहीं मिलती है."-श्रद्धालु

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