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कैमूर: सरकार की उपेक्षा का शिकार बना बख्तियार खां का रौजा, यहां होती हैं मन्नतें पूरी - government negligence

16वीं शताब्दी में बने इसे किले की स्थिति काफी बदतर है. किले के आसपास न तो शौचालय है और न ही पीने के लिये पानी का खास इंतजाम है. स्थानीय लोगों का कहना है कि किले की आखिरी मरम्मत लगभग 10 वर्ष पहले हुई थी.

बख्तियार खां का रौजा

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Published : Sep 27, 2019, 1:25 PM IST

कैमूर: जिले के चैनपुर प्रखंड स्थित ऐतिहासिक बख्तियार खां का रौजा सरकार की उपेक्षा का शिकार है. जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर स्तिथ बख्तियार खान का स्मारक प्रशासन की उदासीनता के कारण आज तक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो पाया. लेकिन लोगों की आस्था और विश्वास के बदौलत एक धार्मिक स्थान जरूर बन गया है.

दूर-दूर से आते हैं लोग

इस रौजा में काफी दूर-दूर से लोग आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यह ऐतिहासिक धरोहर सबकी मन्नत पूरी करता है. यहां शैतानी शक्ति से परेशान लोगों का जमावड़ा हर गुरुवार और शुक्रवार को लगता हैं. यूपी, बिहार सहित अन्य राज्यों से लोग यहां अपनी मुराद पूरी करने आते हैं.

यहां हर मुराद होती है पूरी
आश्चर्य की बात बात यह है कि पुरातत्व विभाग ने इस रौजे से 100 मीटर तक तक के क्षेत्र को प्रोहिबिटेड घोषित किया गया है. बावजूद इसके रौजे के अंदर पूजा पाठ करने के लिये भीड़ उमड़ती है. लोग रौजे के अंदर बैठकर मुरादे मांगते हैं और शैतानी शक्ति से बचने के लिए गुहार लगाते हैं. बाकायदा इस रौजे के अंदर फातिया किया जाता है और चढ़ावा चढ़ाया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

सरकार की उदासीनता
16वीं शताब्दी में बने इसे किले की स्थिति काफी बदतर है. किले के आसपास न तो शौचालय है और न ही पीने के लिये पानी का खास इंतजाम है. यहां लोग दूर-दूर से घूमने के लिये आते हैं. बावजूद इसके सिर्फ एक चापाकल है. स्थानीय लोगों का कहना है कि किले की आखिरी मरम्मत लगभग 10 वर्ष पहले हुई थी.

रौजे से 100 मीटर तक की दूरी प्रोहिबिटेड जोन

16वीं शताब्दी में हुआ था किले का निर्माण
इतिहास के अनुसार चैनपुर स्तिथ किले का निर्माण शेरशाह सूरी और अकबर काल के दौरान हुआ था. यह किला मधुराना गांव के नजदीक पहाड़ी के एकदम नजदीक है. पीछे पहाड़, नीचे एक छोटी सी नदी और आगे गांव. किला के चारो तरफ एकदम प्राकृतिक नजारा है. किले का निर्माण 16वीं शताब्दी की 1568 में बख्तियार खिलजी ने किया था. मृत्यु के बाद खिलजी का मकबरा यही बनाया गया था. मकबरे को एएसआई और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व की घोषणा की जा चुकी है.

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