कैमूर: जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भभुआ पवरा पहाड़ी पर साढ़े 6 सौ फीट की ऊंचाई वाली मां मुंडेश्वरी और महामंडलेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर को भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है. हालांकि ये कितना प्राचीन है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है.
खुदाई में मिला मंदिर
जानकारी के अनुसार इतना प्रमाण अवश्य मिल रहा है कि इस मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है. बल्कि ये खुदाई में मंदिर मिला है. यहां मिले शिलालेख से पता चलता है कि 526 ई. पूर्व में मंदिर पाया गया, जहां तेल और अनाज का प्रबंध एक स्थानीय राजा की और से संवत्सर के तीसवें वर्ष के कार्तिक (मास) में २२वां दिन किया गया था. इसका उल्लेख एक शिलालेख में उत्कीर्ण राजाज्ञा में किया गया है. मतलब शिलालेख पर उत्कीर्ण राजाज्ञा के पूर्व भी यह मंदिर था, ये पता चलता है.
श्रीलंका से आया करते थे भक्त
वर्तमान में यह मंदिर भग्नावशेष के रूप में स्थित है. यहां पंचमुखी महादेव का मंदिर तो ध्वस्त स्थिति में है. इसी के एक भाग में माता की साढ़े तीन फीट की काले पत्थर की प्रतिमा को दक्षिणमुखी स्वरूप में खड़ा कर पूजा-अर्चना की जाती है, जो भैंस पर सवार है. वहीं, इस मंदिर का उल्लेख कनिंघ्म ने भी अपनी पुस्तक में किया है. उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी है. जहां मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है. वहीं, इस मंदिर के रास्ते में सिक्के भी मिले हैं और तमिल, सिंहली भाषा में पहाड़ी के पत्थरों पर कुछ अक्षर भी खुदे हुए हैं. भक्त कहते हैं कि यहां पर श्रीलंका से भी भक्त आया करते थे.
मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा छोटे वाहन सीधे जा सकते हैं मंदिर के द्वार तक
मंदिर की प्राचीनता और माता के प्रति बढ़ती आस्था को देख राज्य सरकार की ओर से भक्तों की सुविधा लिए यहां पर विश्रामालय, रज्जुमार्ग आदि का निर्माण कराया जा रहा है. पहाड़ पर स्थित मंदिर में जाने के लिए एक सड़क का निर्माण कराया गया है, जिस पर छोटे वाहन सीधे मंदिर के द्वार तक जा सकते हैं. मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियों का भी उपयोग किया जा सकता है. वहीं, बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन पटना से पहाड़ी के नीचे बसा गांव रामगढ़ तक जाती हैं. यहां रेल से पहुंचने के लिए पटना, गया या मुगलसराय से भभुआ रोड स्टेशन उतरना पड़ता है.
'रक्त विहीन पूर्ण होता है पशु बलि'
प्रधान पुजारी उमेश मिश्र ने कहा कि यहां एक अनूठा प्रक्रिया है. पशु को मां के प्रतिमा के समक्ष लाया जाता है. मंदिर के पुजारी के जरिए मंत्रोच्चार के बाद पशु पर अछ्त फूल आदि चढ़ाया जाता है फिर वो मूर्छित हो जाता है और पुनः मंत्रोच्चारण के बाद अछत फूल पशु पर मारने के बाद बकरा खड़ा हो जाता है. यह बलि का प्रक्रिया विश्व
का अनूठा प्रक्रिया है. ऐसे में रक्त विहीन पशु बलि पूर्ण होता है.