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अपने प्रदेश में नहीं मिला रोजगार, अब कर्ज लेकर परदेस जाने को मजबूर हुए मजदूर

कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण प्रदेश से घर लौटे मजदूर को काम नहीं मिला, तो मजदूर महाजन से कर्ज लेकर परदेस जाने को मजबूर हैं. मजदूरों का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव में वोट देने से उनके बच्चों के पेट नहीं भरेंगे.

majdur
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Published : Sep 27, 2020, 6:25 PM IST

जमुईः विश्वव्यापी कोरोना संक्रमण के खतरे को लेकर लगाए गए लॉकडाउन में पैदल ही घर पहुंचे मजदूर अब कर्ज लेकर प्रदेश जाने को मजबूर हैं. कोरोना काल में घर लौटने वाले मजदूरों का सरकारी आंकड़ा 27000 बताया गया है. मजदूरों की मानें तो अब तक सैकड़ों से अधिक मजदूर अपने-अपने काम पर भी लौट चुके हैं और जो बचे हैं, वह भी धीरे-धीरे वापस जा रहे हैं.

लॉक डाऊन के कारण कोलकाता से पैदल घर पहुंचे सोनो प्रखंड के छापा गांव निवासी गिरीश पंडित ने बताया कि वह कोलकाता में मिट्टी का काम करते थे. अपने दर्जनों साथियों के साथ पैदल ही घर पहुंचा था 1 माह से अधिक बीत जाने के बाद भी कोई काम नहीं मिला .सारा पैसा खत्म हो गया और अब उसके बच्चे और पूरा परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

कर्ज लेकर परदेस जाने को मजबूर हुए मजदूर
कोरोना संक्रमण के कारण घर लौटे मजदूर सदर प्रखंड के सुग्गी गांव निवासी नरेश रजक, राजाराम, अजय रजक ने बताया कि वह चेन्नई में मजदूरी करते थें. लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए लगाए गए लॉकडाउन में वह किसी तरह से अपने घर दिल्ली के रास्ते पहुंचे. इसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि घर लौटे मजदूरों को अब यही काम मिल जाएगा और अपने परिवार के साथ रह पाएंगे. लेकिन ना ही राज्य सरकार ना ही जिला प्रशासन की ओर से इन बेरोजगार मजदूरों को कोई रोजगार दिया गया. नतीजतन यह लोग गांव के महाजन से कर्ज लेकर परदेस जाने को मजबूर हैं.

वोट देने से नहीं भरेगा उनके परिवार का पेट
लॉक डाउन के कारण अपने घर लौटे खैरा प्रखंड के उमनतरि गांव निवासी अरुण साहू, महेश साहू, टिंकू साहू सहित उन लोगों ने बताया कि वह कोलकाता में रिक्शा चलाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. लेकिन जो जमा रुपए थे वह अपने घर आकर खर्च हो गए. वहीं अब उसके बच्चे भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

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