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2014 में हुई जैविक खेती की शुरुआत, किसान अब जमकर कर रहे सब्जी की खेती

किसान बताते हैं कि जीवा अमृत का निर्माण भी खुद करते है इसमें गोबर, गौमुत्र, बेसन, गुड़, रसायन मुक्त मिट्टी को उपयोग में लाया जाता है. नीमा अस्त्र, अमृत पानी, अग्नि अस्त्र, ब्रम्ह अस्त्र आदि का प्रयोग कीट प्रबंधन में और बीजा अमृत का उपयोग बीज उपचार के लिए किया जाता है.

jamui
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Published : Feb 2, 2020, 1:02 PM IST

जमुईः जिले से लगभग 17 किलोमीटर दूर वरहट प्रखंड के पांड़ो पंचायत में पड़ने वाला केड़िया ग्राम में 2014 में जैविक खेती की शुरुआत हुई, तभी से जैविक ग्राम केड़िया के नाम से जाना जाने लगा. यहां के 45 किसान वर्मी कंपोस्ट का उपयोग कर 45 एकड़ जमीन पर फसल और सब्जी की खेती करते हैं.

2014 में जैविक खेती की शुरुआत
जैविक ग्राम केड़िया के 45 किसान 45 एकड़ भूमि पर वर्मी कंपोस्ट (जैविक खाद) का उपयोग खेतों में कर धान, गेहूं , तेलहन, दलहन और कई प्रकार की सब्जियां खेतों में उपजा रहे है. यहां के किसानों ने 'जीवित माटी किसान समिति केड़िया' के नाम से किसानों की एक कमिटी भी बनाई है, जहां गांव के किसान खेती से संबंधित विषयों पर चर्चा, परिचर्चा, विचार, विमर्श करते है. साथ ही जमुई जिले और बाहर के जिलों से देखने समझने आए किसानों से जानकारी भी साझा करते है. जैविक खेती की शुरुआत केड़िया गांव के किसान राजकुमार ने की. जिसके बाद धीरे - धीरे कारवां बनता गया. आज 45 किसान जैविक खेती कर रहे है.

सब्जी की खेती

45 एकड़ जमीन पर की जाती है जैविक खेती
ईटीवी भारत से बात करते हुए किसान राजकुमार ने कहा कि जैविकग्राम केड़िया का दौरा कृषि मंत्री प्रेम कुमार सहित कई एमपी, एमएलए और जिला प्रशासन के कई अधिकारी कर चुके है. लेकिन यहां के किसानों के अभी तक कोई अनुदान नहीं मिला है. सिर्फ आश्वासन मिला था कि केड़िया में 'ऑर्गेनिक प्रशिक्षण केंद्र' के लिए भवन बवाया जाएगा, जहां किसान खेती से जुड़े मामलों पर आपस में विचार विमर्श कर सकेंगे. लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ.

देखें पूरी रिपोर्ट

सड़नशील कचड़ा का किया जाता है उपयोग
किसान राजकुमार ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट (जैविक खाद) तैयार करने के लिए गोबर 40 प्रतिशत और सड़नशील कचड़ा खर पतवार, कृषि अवशेष, खेत खलिहान का कूड़ा-कचड़ा आदि का उपयोग किया जाता है. इससे स्वच्छता भी बनी रहती है और खेत में हूरा जलाया नहीं जाता है. इससे पर्यावरण स्वच्छ और हरियाली बनी रहती है. जैविक खेती के कारण खेतों में नमी बनी रहती है.

जीवा अमृत का निर्माण
किसान बताते है कि जीवा अमृत का निर्माण भी खुद करते है इसमें गोबर, गौमुत्र, बेसन, गुड़, रसायन मुक्त मिट्टी को उपयोग में लाया जाता है. नीमा अस्त्र, अमृत पानी, अग्नि अस्त्र, ब्रम्ह अस्त्र आदि का प्रयोग कीट प्रबंधन में और बीजा अमृत का उपयोग बीज उपचार के लिए किया जाता है.

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