जमुई:"कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए" यह पंक्ति दुष्यंत कुमार ने अपने जीवन काल में सरकारों को उनकी नाकामी दिखाने के लिए तब लिखी थी जब देश को आजादी मिली थी. नेहरू से लेकर इंदिरा सरीखे तमाम प्रधानमंत्री और गोविंद वल्लभ पंत, लाल बहादुर शास्त्री और श्रीकृष्ण सिंह जैसे सीएम देश और राज्य की बागडोर संभाले हुए थे. जिन्होंने खाद्यान संपन्नता से लेकर गरीबी हटाओ तक का नारा दिया था. लेकिन उनकी लिखी हुई पंक्ति आज भी 'सुशासन बाबू' के राज में उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी तब थी.
नीतीश कुमार ने साल 2015 अपने ड्रीम प्रोजक्ट की एक पोटली बनाई थी. जिसका नाम दिया था सात निश्चय योजना. उसी ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक था हर घरनल-जल योजना. जिसके माध्यम से हर घर को नल के जरिए जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था. मगर योजना का हाल यह है कि कहींमीनारखड़ी है तो टंकी नहीं, कहीं टंकी भी लगी है तो बोरिंग फेल, कहीं मोटर जला हुआ है, तो कहीं पूरे वार्ड में अभी तक कनेक्शन नहीं पहुंचा पाया है. ये सारी दास्तान जमुई जिले के कुंदर गांव से सामने आ आई है.
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खुद आकर योजना का हाल देख लें सीएम
बिहार में जिस विकास की बयार की बात कह बीते डेढ़ दशक से नीतीश कुमार सत्ता पर कायम हैं. उनकी योजनाओं का यह हाल है. बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान कर खुद को सुशासन बाबू का तमगा देने वाले नीतीश कुमार राजधानी से 165 किलोमीटर चलकर जमुई जिले के कुंदर गांव पहुंच कर अपने महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का हाल खुद चलकर एक बार देख लें.
अभी तो चैत ने पांव ही रखे हैं और भीषण गर्मी पड़नी शुरू हो गई है. बैशाख आते-आते ग्रामीण दो बूंद पानी को तरसते नजर आने लगेंगे. आजादी के सात दशक बाद भी लोग नदी का पानी पीने को मजूबर हैं.
वहीं, इस बाबत कुंदन गांव के ग्रामीणों ने कहा कि जहां भी नल जल का काम हुआ है, अमूमन हर जगह से यही सुनने को मिलता है कि केवल योजना में पैसों का बंदरबांट हुआ है. ग्रामीणों को योजना से कोई लाभ नहीं मिल पाया है. ग्रामीणों ने कहा, 'सरकार चोर डकैत की सुनती है. इंसान की कौन सुनता है. हम लोग गरीब ग्रामीण हैं, जाएं तो जाएं कहां'.